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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरण्यकासनी अरण्यकासमी -बं० । राण कापासी-महा। पत्ति-ते. । ( The wild cotton) गण-तणनाशक, शस्त्र-ततध्न और रूह है। रा०नि० ब०११ । (२) पोलट कम्बल, पीवरी । (A broma Augusta.) अरण्यकासनी aranya kāsani-हिं० स्त्री. दुघल, बरन, कानफूल, रदम,शमुकेह, दुध बथन -पं०, हिं० । पथरी-द० । बुथुर-सिंध० । टैरेक्ज़ेकम् बॉफ़िसिनेली ( Tara xacum Oficinala Wigg.),ट. डेगडेलिश्रोनिस (P. Dandelionis.)-ले० । डेण्डेलिऑन ( Delelion.)-इं०। पिस्सेन-लिट ( Pisseulit.)-क्रां० । उद्रचेकन-को० । मिश्र या तुलसी वर्ग (1.0. Composilue. ) उत्पत्ति स्थान-सर्वत्र हिमालय ( शीतोप्या -ई. मे० मे.) तथा नीलगिरी पर्वतों; उसरी | पश्चिमी सूबों में यह बोई जाती है; तिब्बत में | साधारण रूप से होती है, युरुप ( इलैण्ड) तथा उत्तरी अमरीका | . नोट- डॉ. डाइमॉक महोदय के कथनानुसार सहारनपूर के सरकारी वनस्पत्योद्यान में प्रतिवर्ष इसकी कृषि की जाती है। नाम-विवरण-पुजश्कीनामा के सम्पादक नाज़िमुलइतिब्बा महोदय के कथनानुसार टैरेक्सेकम युनानी भाषा का शब्द है, जो तारास्सुवसे जिसका साङ्केतिक अर्थ तलरियन (मृदुता जनक) है, व्युत्पन्न शब्द है; परन्तु डा०डाइमॉक | महोदय के कथनानुसार इस शब्दकी वास्तविकता अनिश्चित है, कदाचित् यह तर्खश्कू न ( फारसी शब्द) का अपभ्रंश है। उक वनस्पति के गंभीर दनदाने क्योंकि दुग्ध. दन्त के समान होते हैं, इस कारण आंग्ल भाषा में इसे डेण्डिलॉन ( दुग्धदन्त ) नाम से अभिहित करते हैं। इतिहास-यद्यपि प्राचीन युनानी व रूमी चिकित्सकों ने कई भाँति की कासनी का वर्णन किया है; तथापि ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने इस भाँति की कासनी का वर्णन नहीं किया। इब्नसीना ने तर्खर कुन नाम से इसका वर्णन किया है तथा अन्य मुसलमान चिकित्सकों ने भी इसका वर्णन किया है । युरूपमें सोलहवीं शतानि मसीही में फूशियस Fuchsius (१५४२) ने हेडिप्नाइस ( Hedypnois) नाम से, टैगस Tragus (सन् १५५२ई० में ) ने हीरेशियम मेजस (Hieracium ma jus), मैथिोलस Matthiolus (१९८३) ने देन्स. लियोनिस (Deusleonis ) और जीनिनस Linmaus ( १७६२)ने लिएटोडॉन टैरे. *7 (Leonto don Tara xacum) इत्यादि नामों से (जिसको वह इब्नसीना के तोश्न का पर्याय समझते थे ) इसका वर्णन किया है । सतरहवीं शताब्दि के अन्त में यूरूप में अरण्यकासनी ( Dandelion ) का उपयोग बहुतायत के साथ होने लगा। भारतीय ( श्रायुर्वेदिक ) चिकित्सकों को उ ओषधि ज्ञात न थी। नोट-मजनुल् अद्वियह, में हिन्दबाउ. व्यरौं तथा मुहीतश्राज़म में कासमीदश्ती नाम से उन पोषधि का वर्णन किया गया है। प्रयोगांश-युनानी वा भारतीय चिकित्सक तो इसकी जद, पत्र एवं नव्य पौधा सभी औषध कार्य में लाते हैं; किंतु डॉक्टरी में केवल इसकी जद औषध तुल्य व्यवहार में आती है और यह xि० फा० में आफिशल है। अरण्यकासनी मूल पर्याय-टैरेक्सेसाई रैडिक्स ('Taraxaci Radix.)-ले। टैरेक्जें कम् रूट ( Taraxacum Root.), डैण्डेलियन स्ट (Dandelion Root.), हाइट वाइट इण्डाइय (White wild endive.) ० । संघ दन्तीमूल-सं० । जंगली कासनी की जद हिं०, उ० । अर लुल हिन्द बाउब्बरी-० । बीन. तर्वश्न, बील कासनी दश्ती-फा० । ऑफिशल ( Officiisl. ) वानस्पतिक-विवरण- ताजी जड़ (बहु For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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