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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयाया ५५६ अम्ली अयोया aayayaa-अ० अपाहिज, पंगु, व्यर्थ, | (दवाए शरीफ) किया है। यह प्राचीन चिकि बेकाम, निर्बल , असमर्थ, शक्रिहीन, जो किसी त्सकों द्वारा योजित किया हुआ प्रथम रेचन है। काम के योग्य न हो। तदनन्तर इसके अवयवों में समय समय पर परि. अयार ayārn-६. पोरिस प्रोवेलिनोलिया वर्तन होता रहा है। ( Pieris Ovalifolia, D. Don. ), नोट-इसका उच्चारण अयारिज या इया. ऐण्डोमेडा श्रोवेलिफोलिया ( Androy. रज दोनों होता है। eda Ovalifolia, Wall. )- ले। अयारिज फैकरा ayarij-faiqra-अ० तल्ख अयस्ता, एइलन, एल्लल, अरुर, अर्वान-पं०। अर्थात् कडुआ अयारिज । यह एक तिक्क मिश्रित अधिर, अंगिअर, जग्गछाल-नेपा० । पिभाजय रेचक श्रोपध है ।म जकिसी किसीने इसका -भूटिक । कंगशिश्रोर-लेए० । अर्थ 'तिक्रता को लाभप्रद किया है। जब इसमें उत्पत्ति-स्थान-शीतोष्ण हिमालय, काशमीर शह म हज. ल (इंद्रायन का गूदा) सम्मिलित से भूटान पर्यन्त तथा खसिया पर्यत । किया जाता है तब इसको मुशह ह म कहते हैं। प्रयोगांश--पत्र, कलिका। यह शिरःशूल के प्रायः भेदोंके लिए लाभदायक है उपयोग-सूचमपन्न एवं कलिकाएँ बकरों के एवं आमाशय को सांद्र दोषों (अग्नतात गालीलिए विष हैं। कीड़ों के मारने के लिए इनका जह ) से शुद्ध करता है । मेरे प्राचार्य प्रायः इसे उपयोग होता है । इनका शीत कपाय वगोगों इत रीफल सगीर या इतरीफल करनीज या गुलमें उपयोग किया जाता है । (गम्बल) कंदमें मिलाकर उपयोगमें लाते थे । योग गिम्न हैप्रयाराजुतानी ayaranutani-यू० एक अप्रसिद्ध बालछड़, दालचीनी, ऊदबलसाँ, हब्यबलसा, तज, मस्तगी, तगर, केशर प्ररयेक १-१ भाग मयारुफम ayarufas-यू. जर्द सोसन । तथा एलुथा २ भाग सबको कूट छान कर तैयार (Hris). करें । मात्रा- मा० शहद तथा उष्ण जल के अयाल ayāla-हिं० पु०, स्त्री० [ तु० बाल ] साथ। घोड़े और सिंह आदि के गर्दन के बाल | केसर । । नोट-कोई कोई चिकित्सक एलुश्रा को शेष [१०] लड़के वाले । बालबच्च। औषधों के समान भाग लेकर अयारिज करा प्रयाह्वम् ayahvam-सं० क्ली. कांस्य धातु, ! प्रस्तुत करते हैं। इ० अ०) कासा । ( Bronze ). वै. निघ। अयारिज लुगाज़ियाayarij. lāghaziya-१० अयारिज ayarij--अ० इसका शाब्दिक अर्थ ईश्व- | 'लूगाज़िया' एक हकीमका नाम है । यह अयारिज रोय प्रौपध ( दवाए-इलाही ) है, किन्तु शिरःशूल, प्राधाशीशी ( अविभेदक ), वैशाह, तिन की परिभाषा में रेचक औपध को कहते हैं ख शाह, कर्णशूल, 'सर चकराना, (शिरोघूर्णन) और इसकी क्रिया-शक्ति (प्रभाव ) के कारण इसे बधिरता, अदाग (फालिज), कम्पमवायु, ल. परमेश्वर (अल्लाह) से सम्बन्धित करते हैं। क्रवा, माई, श्विन तथा कुष्ठ और अन्य सर्दमाही किसी किसी के मतानुसार प्रत्येक वह औषध, जो (श्लेष्मज) रोगों के लिए लाभप्रद है। योग अपने ईश्वरदत्त प्रभाव के कारण रेचन लाती है, यह हैउसे 'ईश्वरीय औषध' कहते हैं। किसी किसी ग्रंथ इंद्रायनका गूदा १७॥ मा०, प्याज अन्सल भूना में इयारज का अर्ध रेचक (वा दर्पन) किया गया हुमा ( मुशब्बी), गारीकून, सामूनिया,. है; क्योंकि इस योग में रेचक औषधे दर्पन कुटकीश्याम, उश्शन, इस्क र दयून प्रत्येक १ तो. औषधों के साथ है। किसी किसी ने इसका ३॥ मा०, अप्रतीमून, कमाारियूस,एलुश्रा, गूगल अर्थ इसकी शिष्टता के कारण प्रष्ट औषध । प्रत्येक १०॥ मा०, हाशा, प.फारीक न, अनीसू, For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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