SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 600
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अयापान www.kobatirth.org ५५८ खुलास हे अथापना सय्यात उ० मात्रा २० से ६० मिनिम ( बूंद ) । प्रभाव तथा उपयोग प्रयापान के शुष्क पत्र तथा पुरुष कैलम्बा के समान अमूल्य तिम्र बल्य रूप से प्रभाव करते हैं; किन्तु इसमें स्वेदक गुण भी है । उष्ण कषाय (१ श्राउंस से १ पाइंट पर्यन्त ) मद्यग्लास पूर्ण अर्थात् मद्य की शीशी की मात्रा में प्रति दो दो घंटे पश्चात् देने से अत्यन्त स्वेद स्राव होता है । गुले बाबूना ( Chamomile ) के उष्ण कषाय के समान प्रयुक्त परिमाण से चतुर्गुण मात्रा में यह वामक है और विरेचक भी । वायुप्रणालीय कास, संक्रामक प्रतिश्याय तथा मांसपेशीय श्रावात में त्वगोपरि प्रभाव हेतु इसका उपयोग किया जा चुका है और कहदाना तथा केचुओं को निकालने में इसके विरेचक गुण से लाभ प्राप्त किया गया हैं ।। ( मे० मे० हिटला ) प्रभाव में गुले बाबूना से अयपान की तुलना की जासकती है। सूक्ष्म मात्रा में यह उत्तेजक एवं कल्य और पूर्ण मात्रा में कोष्ठमृदुकर है । उपण कषाय वामक तथा स्वेदक है। शीत पूर्व ज्वर ( Ague) की शैव्यावस्था में तथा उम्र प्रदाह जन्य विकारों से पूर्व होने वाली निर्वलता ( depression ) में इसका लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। इसका शीत कपाय, १ आउंस (पान पंचांग ) को १ पाइंट पर्यन्त जल में निर्मित किया जा सकता है तथा तीन तीन घंटे पर दो धाउंस की मात्रा में इसका उपयोग किया जा सकता है। डाइमॉक । कहा जाता है कि इसमें स्कर्वीनाशक तथा परिवर्तक (रसायन) गुण भी है । अमरीका के पीत ज्वर ( yellow fever) में इसके उष्ण कषाय की बड़ी प्रशंसा की जाती है (डॉ० होज़ैक) । इसके तरच सत्व की मात्रा १० से ३० मिनिम (बूंद ) है । पूर्ण मात्रा में यह कोष्ठशुद्धिकारक है। तथा इसे आमाशय या श्रान्त्रविकार, अजीर्ण, कास तथा शीत उवर में देते हैं। इं० मे० मे० । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यामीनून यह पौधा अमूल्य उग्रस्वेदक, बल्य, परिवर्तक, अन्तरुत्सेचापह्न ( या पचननिवारक ) वामक, ज्वरघ्न, मूत्रल और मृदु उत्तेजक गुणों से पूर्ण है। स्वेदक प्रभाव में यह गुले बाबुना से श्रेष्ठतर है । पाचकावयवों पर यह बल्य प्रभाव प्रदर्शित करता है। इससे पित्त स्राव बढ़ जाता हैं । अजी तथ उन दशाथों में, जिनमें उत्तेजक की यावश्यकता होती हैं तथा सविराम, स्वल्प विराम, आन्त्रिक तथा श्रन्य भाँति के ज्वरों, कास, शीत, संक्रामक प्रतिश्याय, प्रतिश्याय और निर्जलता में भी यह उत्तेजक बल्थ कहा गया है । सर्प तथा विषैले जानवरों के दंश पर इसका प्रस्तर (पुल्टिस) रूप से उपयोग होता है। पी० वी० एम० । तिक बल्य रूप से इसको श्रमाराय वा श्रां विकार जैसे- श्रजी में बरतते हैं । श्लेष्म निस्सारक रूप से कास और संक्रामक प्रतिश्याय में इसका उपयोग करते हैं। कास में यह एक अत्युत्तम औषध है । परियायनिवारक रूप से शीतज्वर तथा स्वेदक रूप से भासवात रोग में इसे प्रयुक्त करते हैं । म० श्र० डॉ० 1 रक्तपित्त, सय, प्रदर, अर्श, रक्तातिसार प्रभृति रक्तस्राव एवं किसी श्रंग के श्रस्त्र श्रादि से कट जाने पर रक्तस्राव होने में इसके पत्रस्वरस का आभ्यन्तर एवं बाम प्रयोग उपयोगी होता है 1 ( ० द० ) प्रतिनिधि-पाठा | श्रयापनाह ayápawah-fo (Eupatoium Repandun ) इं०] हैं० गा० । श्रयापनी ayapani-ता०, ते० श्ररखर पं० रञ्जेल उ० प० सू० | (Ayapana ) मेमो० । ध्यापनीन ayapanin इं० सत्व अथापना । देखो -- श्रयापना । अयापान ayapan - हिं० संज्ञा पुं० अयापानी ayapani-ato ( Eupatorium ayapana ) अयामीनून aayáminúna - यू० अफ्रीम | (Opium ) । For Private and Personal Use Only प्रयापना -fo
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy