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. भम्सानिया अम्लोद्गार anlodgāra-हिं० संज्ञा स्त्री० :. उत्पत्ति-स्थान ---शीतोष्ण तथा श्राल्पीय [सं०] खट्टा डकार ।
हिमालय, युरूप, पश्चिमतथा मध्य एसिया और अम्लोषित amloshita-सं० पु. सर्वाक्षिगत जापान । रोग विशेष।
इतिहास-उपरोक दोनों पौधे मुश्किल से लक्षण - पिर और रक की अधिकता वाले
भिन्न है। इनमें से अम्सानिया (E. pachy. दोषों के कारण अन्न का सार भाग खट्टा होकर
elada), एफिडा वल्गेरिस (E.Vulgaris) शिराओं में होता हुश्रा नेत्र को श्याव लोहितवर्ण
की अपेक्षा अधिक शकिशाली एवं विषमतल का कर देता है तथा सूजन, दाह, पाक, अश्रुपूर्ण
(खुग्दुरा ) होता है । इनमें से प्रथम के विषय में और धुधलापन पैदा कर देता है। यथा
श्री जे. डी० एकर महोदय लिखते है:"अम्लोषितोऽयम् इत्युक्रा गदा: पोडश
"इसके बालियों तथा पुष्प में कोई विशेष सर्वगाः ।" वा० उत्तर० प्र०.१६॥
बात नहीं होती, सिवा इसके कि इसमें मम्लोसा amlosa-हिं० (१) अमली ( Phyll- : न्यूनाधिक हाशियायुक्र बैक्टस (पीपिक पत्र)
anthus emblica)। (२) (Bauhinia- होते हैं ।" अम्सानिया ( हुम) की शुष्क Malabarica. Roxb.) इसका निर्यास तथा । शाखाएँ अब भी फारस से भारतवर्ष में पत्र खाद्य कार्य में प्राता है । मेमो० ।
लाई जाती हैं । इसमें औषधीय गुण-धर्म होने अम्रयुलाज amlyulaj-अ० दुग्ध दन्तोद्भव । का निश्चय किया जाता है। उक्त पौधे को प्राचीन दूध के दात निकलना ।
नार्य (एरियन) उपयोगमें लाते थे और सम्भवतः अम्बात् amvat-अ० (ब० व०), मौन, मय्यत । बेद वर्णित सोम यही है । (डीमक )
(१००)। मृत्यु, मरण । ( Deatir) वानस्पतिक-वर्णन-ए० बल्गेरिस एक निग्न अम्शाज ams haj-अ० शारीरिक धातुएँ । स्त्री भूमि में उत्पन्न होने वाला, कठिन, गठा हुआ
तथा पुरुष वीर्य का एकत्रीभवन जो अमिश्रित पौधा है, जिसकी जड़ें परस्पर लिपटी हुई और अचयय का प्राधार बनता है। स्त्री तथा पुरुष के शास्थाएँ (उत्थित,खड़ी) हरितवर्णकी होती है, एवं वीर्य का सम्मेलन । स्त्री व पुरुष वीर्य के पार. जिन पर धारियाँ पड़ी रहती हैं और जो परिक सम्मेलन से जो नुरफा में इत्तिलात लगभग समतल ( चिकण ) होती है । होता है।
पौडिपकपत्र मध्यदिक् शुण्डाकार, धारमम्सानिया amsaniya-40 अस्मानिया वर्जित, लोमश, क्वचित् चन्द्र रेखाकार होता है। (मेमो०) बुद्गुर, के(-चे) वा, बुत्शुर,, खना।
पुष्पाच्छादनक ( Spikeleets ) से । एफिड़ा पेकिन डा ( Ephedra Pachycs- इंच, प्रवृन्तक, प्रायः श्रावतंयुक्र; फल प्रायः ada, Boiss.), ए० जिरार्डिएमा (E.
मांसल, रकवण', रसपूर्ण, पौपिकपत्र युग और •Gerardiana, Wull.)-ले० । फोक
एक या दो बीजयुक्त होता है। बी युगलोसतो-सन० । हुम, हुमा (फा०, बम्ब०)। म०
दर मा समोमतोदर होते हैं। स्वाद- (टहनी) मोह-जापा० । खण्ड, स्वम-कुनवर ।
निशोथवत् और कयाय। इनके पन्ने वा परत
काट कर प्रणुदर्शक से देखने पर इनके तम्तु पफिडा वर्ग (N. 0. Gnetaceae)
एक प्रकार के रक्करस से पूर्ण लक्षित होते हैं। उत्पत्ति-स्थान-पश्चिमो हिमालय, अफगानि
रासायनिक संगठन- (पा संयोगी दय्य) स्तान और पूर्वी फारस ।
इसके प्रकारडमें एफीडीन (Ephedrine) ना
मक एक सारीय सत्व पाया जाता है जिसका संकेत नोट-इसका द्वितीय भेद, एफिदा वल्गेरिस (Ephedra vulgaris, Rich. ) है। ___ सूत्र क°उद नत्र, ऊ. है। भोषजनीकरण
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