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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकाकिया अकाकिया जाता है। निर्माण-विधि-इसके फल और पत्तों को कूट कर रस निचोड़ लें। पुनः इसको छानकर मन्दाग्नि पर यहां तक पकाएं कि यह गाढा होजाए। विवरण-यह भारी दृढ़ तथा प्रियगंधयुक होता । है। इसके छोटे टुकड़े प्रकार के सामने देखने से । हरित श्रोतल के रंग के म.लून होने हैं; किन्तु ।। को ई२ कुछ ललाई लिए हुए होते हैं। इसके बड़े बड़े टुकड़े काले वर्ण के दीख पड़ते हैं। स्वादमधुर, कसेला और लुग्राबदार होता है। शीतल जल में डालने से यह लुबाब रूप में परिणत हो जाता है और इसमें पीताभायुक्र धूसरवर्ण अथवा भूरापन लिए हुए हरे रंग के पदार्थ तैरते हए प्रतीत होते हैं । छानने के पश्चात् लुश्राब का रंग अबुल गोंद के समान होता है। प्रकृति-३ कक्षा में (अशुन्द्र ) ठण्डी और रूस ' है । हानिकर्ता-रोध उत्पादक है । दर्पनाशक-रोमन बादाम । प्रतिनिधि-चन्दन और रसौत । मात्रा-३॥ मा० । अकाकिया-गुणा बम-यूनानीग्रन्थकारों के जन से अहानिया बालों को काला करता है । क्योंकि यह बालों की तरी को दूर करता है। सभी के फटे हुग हस्तपाद (विवादिका ) के लिए गुण दायक : है, क्योंकि अपनी संकोचनीय शनि के कारण यह . अवयवों से विच्छिन्न भागों को संकुचित एवं एकत्रित करता है, अवयव को अलवान बनाना और इसे फटने से रोकता है। दावस (अंगुल बेड़ा ) । के लिए लाभदायक है, क्योंकि इस में दरदक पैदा करता तथा माहाको लौटाता है । इसी कारण अन्य शोथों कोभी लाभप्रद है। मुह के क्षनों को दूर करता है क्योंकि उन रहूवनों को शुष्क कर देता है जो क्षतको पूरित नहीं होने देती। अपनी शुष्कताके कारण संधियों की शिथिलता को लाभप्रद है। दृष्टि को बल देता और उसे सूक्ष्म एवं तीय बनाता है क्योंकि यह नेत्र की सान्द्र रतूवतों को जो रूहको गलीज़, करने वाली हैं, श्रमिशोषित कर लेता है। श्रात्र प्राने में लाभ व शान्ति प्रदान करता है, क्योंकि यह ौत की और मलों के बहाव को रोकना है। और नाखना (नेत्रम्य र विन्दु) को अापकों में डाला जाता है, क्योंकि यह इन्दि की शक्ति प्रदान करता है, और इसकी चिकिम्मा जो उण नीरस एवं भक (अकाल) प्राधियों उपयोग में पाती हैं उनकी पीड़ा से नेत्र को सुरक्षित रखा है। पान, अनुलेपन तथा बसिस (हु कना) रूप से प्रयुक करने से यह कज पैदा करता है । प्रवाहिका रातोसार र रात्र का नृण करता है। निकली हुई काँच (गुदभ्रश) को अमलो दसा पर लौटाना एवं उसको तिथिला कोदर करता हैं, क्योंकिहममें संकोचक शधि तथा रूजता विद्यजात होती है। उ अभिप्राय हेतु इसकी बिलाते हैं अथवा इसे लेप रूप से उपयोग में लाते हैं। ( नका.) अकाक्रिया या प्रकाकिया के प्रभाव तथा प्रयाग-कफ निस्मारक, वक्षःस्थलस्थ वेदना श.मक, संकोचक,रक्रस्थापक, मताजनक और बल कारक । श्रत प्रणालीस्य कलाओं तथा जननेन्द्रिय या मत्र मान्धी अवयवों पर इसका सर्वोत्तम प्रभाव होता है। इसी कारण अनिमार, प्रवाहिका, पूजाक(पूय मेह), नासूर और पुरातन बस्तिप्रदाह प्रभात विकारों में यह अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होता है। यति अकीन तथा इसके कुछ योगिकों को अर्षका यह का प्रभावजनक हाना है, तथापि उस अवस्था में, जब कि यह अकेला उपयोग में लाया जाए, सनस्त वानस्पतिक तथा खानेज संकोचक श्रीपों से अधिकतर प्रभावकारक प्रमाणित होता है । जलोदर के साथ जब अनि सार एवं प्रवाहिका हो तो अपील और इसके योगिक प्रायः हानिकर होते हैं, क्योंकि जिस मात्रा में अतीसार प्रभति को रोकने हैं उसी अनुपात में जलोदर को वृद्धि करने हैं। इसी कारण "श्रतक्रिया प्रांत्र रोगों में अफीम तथा इसके अन्य यौगिकों का अपेक्षा श्रेष्तर तथा लाभदायी औषध हैं। अक़ाकिया मरसूल (धोया हुश्रा)-इसकी विधि इस प्रकार है-अक़ाकिया की पानी में सरल For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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