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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अस्लपनसः अम्लपित्त (अम्लपाक) हुआ और पहिले बर्षाऋतुमें जल तथा औषधों में स्थित विदाह श्रादि कारणों से जो पित्त सञ्चित हुश्रा है, उसके दूषित होने को अम्लपित्त कहते हैं। य. ४। (२) चांगेरी, चूका । ( Rumexi Seutatus ) रा. नि० ५० ५। (३) चूदारिलका-सं। खुदे गुनी-बं० । अम्लपनसः ana-p:11hasah--सं० पु . लि कुन वृन, बड़हर । डेलो, मान्दार गाछ-६०। श्रोटीचे माइ-म० । वै. निय० । (Artocay : pus Lakoocha.) अम्ल पणिका amla-pa.nika अम्लपण amlapuuni स्त्री० वृक्ष विशेष । सुरपर्णी | भा० । गुणअम्लपर्णी वात, कफ तथा शूल विनाशिनी है । ० निघ० 18.U-Slaparni. अम्ल पादपः amla-pala.pah-सं० पु. : वृताम्ल, अमली । तेतुल गाछ-बं०। कोयंबी. -म० । वै० निघ० । अम्लपित्तम् amla-pittan-सं० क्ली० अम्लपित्त min-pittin--हिं० संज्ञा पु. . (Ilypor-accility), सावर बाइल (Sou]. . bile)-- इ. । हुम्त - अ० रोग विशेष। इसमें जो कुछ भोजन किया जाता है, जब पित्त के दोष से खट्टा हो जाता है। निदान पूर्व सञ्चित पित्त, पित्तकर याहार बिहार से जलकर अम्लपित्त रोग पैदाकरता है। पिन विव. ग्ध होने पर भीजन अच्छी तरह पचना नहीं हैं, जो : पचता है वह भी अम्ल रस में परिगान हो जाता है, इसी से अम्ल श्रास्ताद होता है और खट्टी डकार श्रादि उपद्र उपस्थित होते हैं। अजीर्ण होने पर भोजन, गुरु पदार्थ और दरसे पचने वाली वस्तुयी । का भोजन, प्राधिक खट्टे और भुने व्यों का खाना इत्यादि कारणों से अम्लपित्त रोग उत्पन्न होता है । कहा भी है-- विरुद्ध दुष्टाम्ल विदाहि पित्तप्रकोपि पानान्नभुजो । विदग्धम् । पित्तं स्वहेतूपचतं पुरा यत्तदम्लपित्तं ! प्रवदन्ति सन्तः ॥ (मा० नि०) अर्थ-विरुद्ध (तीर, मत्स्यादि), दुष्ट(बासीअन्न), खट्टा विदाहि तथा पित्त को प्रकुपित करने वाले अन्नपान ( तकसुरादि ) के सेवन से विदग्ध लक्षण श्राहार का न पचना, क्रांति (थकावट वा अमित होना), वमन ग्राना या जी मिचलाना, निक्र तथा खट्टी डकार श्राना, देह भारी रहना, हदय और कंठ में दाह होना और अरुचि धादि लक्षण अम्लपित्त के वैद्यों ने कहे हैं । ऊ तथा अधः भेद से यह दो प्रकार का कहा गया है। ऊर्द्धगत अम्लपित्त के लक्षण उद्धगत अम्लपित्त में हरे, पीले, नीले काले. किंचित लाल, अतिपिच्छिल, निर्मल, अत्यंतखट्टे, मांग के धोवन के जल के समान कफयुक्र लवण, कटु, तिक इत्यादि अनेक रसयुक्र विच वमन के द्वारा गिरते हैं। कभी भोजन के विदग्ध होनेपर अथवा भोजन के न करने पर निम्ब के समान का वमन होता है और ऐसी ही उकार पाती ह, गला हदय तथा कोख में दाह और मस्तक में पीड़ा होती है। कफ पित्त से उत्पन्न अम्लपित्त में हाथ पैरों में दाह होता है शरीर में उप्णता अन्न में अरुचि, ज्वर, खुजली और देह में चकत्तों तथा सैकड़ों फुन्सियों और अन्न न पचने आदि अनेक रोगों के समूह से युक्र होता है। अधोगन अम्लपित्त के लक्षण प्यास, दाह मुर्छा भ्रम, मोह (विपरीत ज्ञान) इन्द्रियों कामोह)इनको करनेवाला पित्त कभी नाना प्रकार का होके गुदा के द्वारा निकलता है और हल्लास (जी का मचलाना), कोठ होना, अग्नि का मन्द होना, हर्ष,स्वेद अंग का पीत वर्ण होना श्रादि लक्षणों से जो युक्र होता है उसको अधो. गत अम्लपित्त कहते हैं। दोष संसर्ग से अम्लपित्त के लक्षण वात युक, वात कफ युक्र और कफ युक्त ये दोपानुसार, अम्लपित्त के लक्षण बुद्धिमान वैद्यों ने कहे हैं। कारण यह है कि उद्घ गत में वमन For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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