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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकत्तनः अकलयेर karna.)। (३) साँप, सर्प (Snake, अकलबार जानि a stlpent )! (1.O. Hitiscer.) अकर्तनः alka tarah-सं० त्रि० (Dwarf... उत्पत्ति-स्थान -हिमालय ( काश्मीर से नेपाल पर्यन्त ) और सिन्ध । ish ) वामन ! वै. श० लि.। वाँथोन-बं० । वानस्पतिक विवरण-कागड-२-६ फो0, अकर्षण akarshana- हि० संज्ञा पु० दे० कोर, शाखी: निम्नपत्र-१ फु०, पक्षाकार । आकर्षण। अकलकरः ॥kalkarah-सं० पु० उकरा, लघुपत्र ( पत्रक)-७-११ संख्या में, ई० लम्मा १॥ ई० चौड़ा, पत्रमूल (ठल )-युक, ऊर्च पोकरमूल (Spilanthus (Ocracere) (पत्र) अन्यन्न सूर नथा कम कटे हुए इ० मे० मे० । फा००। पुष्पपत्र (पंग्व डी) मनन्य (अनिश्रिन) अकलकरा akalkar का अकरकरा ३ इं० लम्बा तथा १। इ० चाहा, पुष्पटण्डी में अकलकोरा qalqari ) (Pyrethrumm प्रायः पतली धनियां होती हैं। Radix) FOOT पगग-कोष-लम्बा अधिक बड़ा, तन्तु बहुत अकल akala -हि. वि. [ मं० ] सूक्ष्म । (1) अवयव रहिन । जिसके अवयव न हो। नारितन्तु-चोथाई ई०, डोडा (छीमी) चौथाई (२) जिसके वंड न हो। प्रखंड । सर्वारपूर्ण । इन्ज लन्चा तथा इससे कार चौडा.एक कोषीय, सिरे (Not in parts, without prt s. ) परम्खुला हश्रा: बोज वहसंख्यक धारीदार होते हैं (३) [सं० अ-नहों+हि कल-चैन ] तथा अधार पर एक जालो नुना आच्छादन लगा बिकल । व्याकुल । बेचैन। रहता है। फ्लो नि० ई०। अकलवर akala bar-हिं० संज्ञा पुं० दे० प्रयोगांश-तुप, मूल, और स्वचा । अकलबोर। अकलबोर. a.ka.la.bi1: 16. संज्ञा पु० [सं०] रसायनिक संगठन ( या संयोगी तत्व )-- करवीर भांग की तरह का एक पौधा जो हिमालय पत्र तथा मूल में एक प्रकार का ग्लूकोसाइड पर काश्मीर से लेकर नेपाल तक होता है । इसको अकलबारीन (Dutiscin) क.१ उद२२ जड़ रेशम पर पीला रंग चढ़ाने के काम में श्राती ऊ, एक राल ( It sin) तथा एक भांनि है। ( Dativea, Canna billn, Linu.) का कटु सन्त्र पाया जाना है। अकलबारीन देखो-अकलवार ( Datistiny ) वर्णहीन रेशमवत् सूची अथवा अकलयर्की aka] burki-२० सर्वजया, कामा- छिलके रूप में पाया जाता है। यह शीतल जल क्षो-सं०। सवजया-हि। देवकली-मह० । में कम नथ। उष्ण जल एवं ईथर में अंशतः विलेय कृष्ण ताम्र-ते। कण्डामण्ड-ना०,(Canma. होता है। रवे (Neutral) और स्वाद में कटु Iulien, C. orientalis. ) ९०मे० मे। . होते हैं । १८." शतांश के नाप पर पिघल अकलवार akalabar-हिं० (१) सबजया-वं० : सर्वजया, कामाक्षो-सं० । तेहर्ज-काश। औषध-निर्माण-पौधे का शोनकपाय (Common Indian Shot.) इं० है. (१० भाग में १ भाग ): मात्रा-प्राधे से गा० । ई० मे० मेगा फॉ० इं० ३ भा०। १ श्राउंस (से २॥ ते०), चूर्ण-मात्रा अकलबार akalbir ! -हिं० पैर-वन, ५ से १५ प्रैन (२॥ रत्ती से ७॥ रसी)। अकलबेर aka.ly.:! भङ्गजल(फॉ० ई०) प्रभाष व उपयोग--अकल बार कट तथा -बन्न बंग ( ई० मे० मे० )-पं० ।। सारक है और कभी कभी ज्वर, गण्डमाला तथा वगतङ्गेल तेहर्ज-काश० । रेटिस्का केनाबीना! श्रामायिक रोगों में उपयोग किया जाता है। (Datisca Cannabina, Tinn.)-ले बगान (Khagan ) में इसकी जड़ को For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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