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अम्बर
स्रोत का जोश ( या रत बन ) है। उनके विचार । से जिन लोगों ने इसको समद्रफेण वा किसी सामुद्री चातुष्पद जन्नु का गोवर लिखा है, वह मिथ्या है।
शेन के सिवा कतिपय अन्य इतिश्बा भी इसी विचार के समर्थक हैं और इसे ही सत्य एवं | अधिक प्रामाणिक मानने हैं । अस्तु, उनका वर्णन है | कि अम्बर एक रत्तूयत है जो समुद्रतल स्थ स्रोतों | एवं समुद्र के ग्राम्यन्तरीय कान याद्वीप से कफर, मोमियाई तथा कीर के समान निकलता है
और अम्बर कहलाता है। यह सामुद्र तरंग के थपेड़ों के कारमा उत्ताप पहुँचने से समुद्र के पानी पर नह बतह एकत्रित होकर स्सन्द्र(प्रगाढ़) होजाना है ।..और शमामह के समान गोल या अन्य स्वरूप ग्रहण कर समुद्र तट पर श्रा पड़ता है। कहते है कि समुद्री जीवों को अम्वर अत्यन्त प्रिय है। जब यह उनको मिलता है तब ये इसको तुरंत निगल जाने हैं। किन्तु न पचने के कारण यह उनकी नार डालता है अथवा उनके उदर में प्राध्मान उत्पन्न कर देता है और वे जन्तु पानी के ऊरर श्रा जाने हैं। जो लोग इस बात का ज्ञान रखते हैं वे तत्काल उक्र जीव के उदर को विदीर्ण करके अम्बर निकाल लेते हैं। इस प्रकार का अम्बर श्याम वर्ण का और बसाँध युक्त (पूति गंधमय होता है । इसको अम्बर बलाई, कहते हैं। यह अंबर जंजी (जंगी) नामसे भी प्रसिद्ध है। यही कारण है कि किसी किसी ने इसको समुद्री गाय का गोबर माना है।
अम्बर के सम्बन्ध में मुल्ला नफीस के ये वचन हैं
"किसी किसीके कथनानुसार यह बात सत्य है कि भारतवर्ष में यह मधु से प्राप्त होता है। इसको इस प्रकार प्राप्त किया जाता है । मधु मक्षिकाएँ सुगंधित पुष्प और पत्र से रस चूस चूस कर मारतवर्ष के पर्वतों पर मधु का निमोण करती हैं । इसी कारण यह मधु अत्यन्त सुगंधयुक्त होता है। फिर जब वर्षाधिक्य के कारण उन मक्षिकाओं के छत्तों पर जल का सैलाब श्राता है
तब मधु तो पानी में घुल जाता है और केवल मोम का भाग अवशिष्ट रह जाता है। यह अत्यंत सुगंधित होते और नदियों में बहते हुए समुद्र तक जा पहुँचते हैं । फिर यह समुद्र के पानी में सूर्यताप द्वारा द्रवीभूत होते हैं एवं स्वच्छ हो जाते हैं। समुद्र तरंग इनको तट पर ला डालता है । यही अम्बर होता है।" इसके ज्ञाता इसे उठा कर ले जाने और बहुमूल्य लेकर बेचते हैं। __ मुल्ला सदाद गाज़रानो ने मुफदान कानून की टीका में उपयुक कथन का समर्थन किया है और उसी वचन को सत्य माना है। क्योंकि अम्बर में मोम के लक्षण व्या हैं । कारण यह है कि उष्ण जन में घोलने से वह घुल जाता है एवं शीतल होने पर माम के समान जम जाता है। कतिपय इतिचा ने लिखा है कि प्रतिष्ठित व्य क्रियों की ज़बानी सुना गया है कि कभी सौभाग्यवश ताजा अम्बर हस्तगत होजाता है। वह मधुर खमीरवत्, सुस्वादु, मृदु और अत्यन्त सुगंधित होता है और यमन सागर, मालदीप तथा प्रशांत महासागर और समुद्र तरंग द्वारा उनके समीपके तटों पर प्रा लगता है तथा वहाँ के निवासी उसको उहा लाते हैं।
हकीम उलवीखाँ लिखते हैं कि मैंने अम्बर शमामह, (सवोत्कृष्ट प्रकारका अम्बर जिसके टुकड़े गोल होते है ) देखा है। उसमें मधु मक्षिका के समान बहुत से जन्तु लगभग शत की संख्या में थे।
मीर मुहम्मद हुसेन लेखक मजनुलअद्वियह लिखते हैं कि मैंने भी अम्बर का एक टुकड़ा देखा है जिसमें किसी रन जौज़ी वर्णके सदफ्री (शौक्रिक) जन्तुके सिर व ग्रीवा और चंचुवत् कोई वस्तु दृष्टिगोचर होती थी । परन्तु तो भी हमारे समीप वे ही वचन अधिक यथार्थ एवं विश्वस्त ज्ञात होते हैं जिन्हें शेन तथा प्रायः इतिब्बा ने वर्णन किए हैं। ( अर्थात् अम्बर एक रत्बत है जो समुद्र तल के कतिपय सहायक तथा दीप से मोमियाई और कीर प्रभृति के समान निकलती
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