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अमलतास
४७७
अमलतास
मोफ, १
को जाकु-
पकाएं
सूचना-कास रोगी को इस योग का सेवन
(११) शियात खयार शंवर-(प्रारग्वध न कराएँ ।
फल वर्ति)-पारग्वध फन्ल मजा, लाल शकर ()प्रारग्वध वटिका-मरज फलस प्रत्येक ३ ती०, सनाय मक्की १॥ तो०, खिल्मी खयार शंबर ७॥ तो०, समनिय। मुशवी । ११ मा०, लवण ३॥ मा०। निर्माण-विधि(भुलभुलाया हुश्रा) ॥ मा०. कतीरा इ मा०, । श्रीपों को कूट पीस कर प्रथम दो श्रौषधों के पीली हड़ का यकला, काबुली हड़, काचुली द्वारा बर्सि प्रस्तुत करें और यथाविधि उपयोग हर का बकला, समाय मक्की, ज़रिश्क में लाएँ। ( साफ किया हुया), गुल बनाया प्रत्पेक
गुग्ग---उदरशूल को लाभप्रद है और कोड १॥ तो० । निर्माण विधि-माज़ फलस
को मृदु करता है। खबार शंचर के सिधा शेप सब श्रौषधों को कूट , छानकर तो० १०॥ मा० मधुर वाताद तैल में (१२) पारग्यध त्वक् क्वाथ-पारग्वध मदन करकं चने प्रमाण वटिका प्रस्तुत करें की छाल, सौंफ, कुसुम्भ बीज प्रत्येक ५ तो०, और वर्क चाँदी में लपेट कर रखें। मात्रा- मजी ३ मा ! सब को जौकुट कर के १। सेस श्रावश्यकतानुसार इसमें से ७ मा० से १ मा० पानी में १॥ पाव जल शेष रहने तक पकाएँ। तक सेवन करें।
फिर शर्बत बरी मिलाकर पिलाएँ। गुण--यह सर्वोत्कृष्ट विरेसन है और मस्तिष्क
गुण-रजः रोध एवं कष्ट रज में लाभदायक रोगों में हित है।
(६) मुलरियन मुबारक -गुलाब १ तो अमलतासकल्प amajatasa-kalpa-हि.प. गुल नीलोफर १ तो०, गुलबनशा ! तो०, अमलतास को दाह और उदार्वत से पीड़ित रोगी पालबोखारा १ तो० तुरंजबीन २ तो०। को दाख के रस के साथ दें (१)-४ वर्षकी अवस्था निर्माण-विधि-समग्र औषधों को रात्रि भर | से लेकर १२ वर्ष तक की उम्र वाले के लिए श्राधसेर अर्क गुलाब में तर करके प्रातः काल इसके गूदे की मात्रा १ प्रसृत से १ अंजली तक इतना पकाएँ जिससे श्राधा शेष रह जाए। है। इसे सुरामण्ड, कोल शीधु,दधिमण्ड, मामले तदनन्तर फल्स खयार शंबर १० तो० को उक्त के रस या शीत कपाय बनाकर उसे सौवीरक के तरल में डालकर थोड़ी देर तक मृदु अग्नि देकर साथ दें। (२)-अमलतास की मजा (गूदे) उतार लें। इसमें १० तो. हड़ के मुरब्बे का के साथ दूध को सिद्ध करके उससे घी निकालें, शीरा मिलाकर १ तो० रोग़न बादाम सम्मिलित
फिर उस घी को प्रामले के रस और उसके गूदे कर लें। मात्रा-अवस्थानुसार वैद्य की राय के कल्क से सिद्ध कर सेवन करें। (३)-अथवा से।
उसी घी को दशमूल, कुल्थी, और जौ के कपाय गुण-यह प्रत्युत्तम कोष्टमृदुकर है। यह तथा निसाथ श्रादि के कल्क से सिद्ध करके सेवन अत्यन्त सुस्वाद और प्रत्येक प्रकृति के अनुकूल
करें। (४)-अथवा दन्ती क्याथ लेकर उसमें
अमलतास को मज्जा (गूदा)१ अंजली और (१०) प्रारम्बध गण्डूप-रूलब ख़यार | गुर। अंजली मिलाकर यथा विधि सन्धान कर शंबर ६ तो०, पृष्टि जल २० सो०, शिब्ब यमानी
४५ दिन तक रक्खा रहने दें. जब अरिष्ट सिद्ध हो ( यमनी फिटकरी) मा० सबको विलीन करके
जाए तो उसे सेवन करें। जिस मनुष्य को मधुर गण्डूष कराएँ।
कटु या लव जिस प्रकार का खान पान प्रिय गुण-टॉन्सिल के शोथ तथा खुनाक के हो उसे उसी के साथ अमलतास से विरेचन देना लिए रामवाण है।
उचित है। च० सं० च० अ०।
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