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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भभ्रकम अम्रकम् अनुपान जिनके साथ ऐसी भस्में प्रयोग में लाई जाती हैं, यदि उनसे कोई लाभ होता हो । तो वह उसी अनुपान का प्रभाव होता है नाममात्र को प्रभावकारी मानी जाती है । परन्तु ! अनुभव इस बात का विश्वास दिलाता है कि उस अवस्था में जब भस्म संग में न हो तब अनुपान की इतनी अल्प मात्रा का शरीर पर किसी प्रकार का प्रगट प्रभाव नहीं होता। अस्तु यह भस्म का ही गुण है कि इतनी अल्प औषध का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर में पहुँचा देता है। गोया किसी वस्तु की शुद्ध भस्म एक ऐसी रसायन है जो मुख में डालते ही सम्पूर्ण शरीर के नस व नादियों में व्याप्त हो जाता है और अपने स्वाभाविक एवं मौलिक गुणधर्म के प्रतिरिक जो उसमें अन्तर्निहित हैं प्रत्येक उस औषध के प्रभाव को जिसमें वह भस्म किया गया है या जो अनुपान रूपसे प्रयोग की जा रही है, सम्पूर्ण शरीरमे विशेष कर रोगस्थलपर अत्यन्त शीघ्रतापूर्वक एवं स्थायी रूपसे पहुँचा देता है। जो दवा सेरों खाने से तब कहीं जाकर शरीर में अपना प्रभाव प्रगट करती है वह एक दो मा० की मात्रा में भस्म के संग योजित करने से तरक्षण सेरभर औषध के प्रभाव से भी अधिक प्रभाव प्रगट करती है। पुनः चाहे वह प्रभाव उक्र औषध का ही क्यों न हो, पर औषध की इतनी अल्प माना और प्रभाव की उस तात्कालिक शक्रि को देखकर प्रत्येक न्यायग्राही व्यक्रि यह निर्णय कर सकता है कि यह प्रभाव भस्म का ही है। क्योंकि यदि उक्त प्रभाव उस औषध का होता तो भस्म की अनुपस्थिति में भी इतनी अल्प मात्रा में प्रगट होता । परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं । श्रतः यह सिद्ध हो गया कि उपर्युक्र सम्पूर्ण चमत्कार उक्र मस्म के ही हैं जो उक्त औषध के साथ सम्मिलित होकर उसके प्रभाव को सौगुना कर दिया। फलतः अभूक की भस्म को उपयुक्र अनुपान ) द्वारा प्रत्येक सर्द व गर्म वा परस्पर विरुद्ध (द्वंद ग्वाधियों) तद्वत् सफलता पूर्वक वरता जासकता है। केवल योग्य एवं व्यवहार कुशल होने की अावश्यकता है। इसके विपरीत बहुत सी अन्य भस्मों की तरह इसके द्वारा किसी प्रकार विषैले प्रभाव प्रगट होने की आशंका नहीं अतएव हर एक व्यक्रि में प्रत्येक ऋत, अवस्था एवं रोग के लिए इसका निर्भय एवं निरापद उपयोग किया। जा सकता है आयुर्वेद के मत सेअभूक भारी, शीतल, बल्य है तथा कुष्ठ, प्रमेह और निदोष नाशक है । मद०व०४। __रसायन, स्निग्ध है। और बल वर्ण एवं अग्नि वर्धक है। राज। कपेला, मधुर, शीतल, श्रायुकर्ता और प्रायु बर्धक है । प्रयोग- यह त्रिदोष, ण, प्रमेह, कोद, प्लीहोदर, गाँउ, विषविकार और कृमि रोग को दूर करता है। मृत अभ्रक के गुण अभूक की भस्म रोगों को नष्ट करती, देह को हद करती, वीर्य बढ़ाती, तरुणावस्था प्राप्त कराती और शत स्त्री संभाग की शनि प्रदान करती है। दीर्घायु और सिंह के समान पराक्रमी पुत्रों को पैदा करती है । निरन्तर मृताभूक का सेवन मृत्यु के भय को भी दूर करता है। श्री पार्वती जी का तेज अर्थात् अभूक अत्यंत अमृत है, वात, पित्त और क्षय का नाश करता है। बुद्धि को बढ़ाता, बुढ़ापे को दूर करता, वृष्य ( वीर्य कर्ता ) है । श्रायु को बड़ाता बल कर्ता एवं चिकना है। रुचिकर्ता, कफनाशक, दीपन और शीत वीर्य है । पृथक् पृथक् योगों के साथ सकल रोगों को दूर करता और पारद को बाँधता है। श्रायुष्य का स्तम्भन करता, मृत्यु तथा बुढ़ापे को दूर करता, वल तथा प्रारोग्य प्रदान करता और महाकुष्ठ को दूर करता है। मृत अभ्रक को सब रोगों में बर्तना चाहिए, क्योंकि इसमें सदैव पारे के समान गुण हैं। देह की दृढ़ता के लिए . इसको ३ रत्ती की मात्रा में खाना चाहिए । इसके सिवाय बुढ़ापे और मृत्यु का हर्ता दूसरी दवा For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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