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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपिसम् ४०६ अपूर्वारसः अपित्तम् appittam-सं० क्लो. चिम्रक, | ___ कर गोलाकार बेले और पीछे इसको घी में stari ( Pluinbayo zeylanicumi). पकाएँ । इसे ही 'अपूप' प्रभृति नामों से अभिप्रम। धानित करते हैं। इसे बलकारक, हृय, रुचिकारक अपुन apunga-छो० नाग०, संता० तुलतुली, । भारी, वृष्य, तुष्टि देनेवाला पित्त और वायु को सिदोरी-यम्ब० । ( Holostomma j शमन करने वाला स्था मधुर कहा है। चै० rheedii) ई० मे० मे०। निघ०। अपुच्छ apuchchha-हिं० वि० पुच्छ रहित । (२) गोधूम, गेहूँ। (Wheat)रा० (Tailless ). नि०व० १६। (३) इंद्री । “इन्द्रियम् अपुरुछा apuchchha-सं० स्त्री० शिशपावृक्ष ! अपूपः" । ऐ०२।२४। अथर्व० । सू० । -सं०। शोशव (-म-)-हिं० । A timber ५। का. १०। tree. ( Dal bergia Sisu) अपूप्यः apupyah-सं० पु० (१) गोधूम, अपुत्र aputra-हिं० वि० [सं०] जिसके पुत्र गेहूँ (Wheat)। (२) गोधूम चूर्ण, गेहूँ न हो । निःसन्तान । पुत्रहीन | निपूता | __ का श्राटा, मयदा । ( Wheat flour). अपुरुष apurusha-हिं० वि० प. [सं. अपूरणो apurani-सं० स्त्री० (१)शाल्मली पुरुषत्वहीन, नपुंसक । ( Impotent) | वृक्ष । सेमल (-र)-हिं० । (Bombax Malaअपुष्टः apushrah-सं० त्रि. अपरिपक्व, कच्चा ।। ___baricum ) श० च०। (२) कार्पास वृक्ष, (Immature). कपास । (Gossypiurn Indicum). अपुष्पः apushpah-सं० पु. उदुम्बर वृक्ष, | अपूर्ण apāina-हि. वि. अधुड़ा । (Imper___ गूलर । ( Ficus glomerata). ____fect), अपुष्यफलदः apushpa-phaladah-सं० पु. अपूर्ण-मण्डलम् .purna-mandalam-सं० पनसवृक्ष, कटहल । (Artocurpus inte- | | क्ली० अधुड़ा घेरा, अद्ध वृत्त । (Imperfect grifolia ) फणस-म०। रा० नि० 40 cirsle). ११ । बिना पुष्प के फल लगने वाले वृक्षमात्र ।। अपूर्वारसः a.pur vorasah-सं० पु. कपूर. ( Flowerless tree ) रा०नि०। रसः, उत्तम हींग १० तो० लेकर इसको २ मूषा अपुष्पित apushpita-हिं० वि० [सं०] पुष्प बनाकर उनके भीतर २ तो० शुद्ध पारद डालकर रहित, बिना फूले हुए । Without flowers दूसरी मूपा को ऊपर रखकर कपड़मिट्टी कर . (a tree or plant ), not bearing दें। ऊपर वाली मूपा के तल में पहले से ही flowers, not in flowers. एक बारीक छिद्र कर लें, फिर एक हाड़ी में अपूत a putta-हिं० वि० [ सं०] अपवित्र । नीचे थोड़ा सा यवक्षार और समुद्रलवण रख अशुद्ध । -वि० [सं० अपुत्र, पा० अपुत्त } पुत्र- कर बीच में ऊपर वाला यंत्र धरकर ऊपर वही हीन । निपूता। क्षार और लवण रखकर यंत्र को तिरोहित कर अपूपः a pupuh-सं० पु. दें, उसके ऊपर साफ ठीकरे ढककर दूसरी हाँडी अपूप apipa-हिं. संज्ञा पु. ऊपर रखकर कपड़ मिट्टी कर दें। फिर उसको (१) पिष्टक : पूरी, पूड़ी, पुश्रा--हिं० । पुलि सूखने पर चूल्हे पर रखकर - पहर तक साधारण पिटे-ब० । घारणे-म । कोई कोई इसे पाय रोटी ! आँच देना और ठण्डा हो जाने पर उन खपड़ों में कहते हैं। पूरब में इसे रोट अथवा सुहारी कहते लगी हुई सुवर्ण के सदृश चमकीली वजन में है । हला० । बारीक पिसे हुए गेहूँ के पूरी पारद भस्म मिलेगी। उसको बारीक कपड़े आटे में गुड़ मिलाकर जल से भली भाति मईन में रखकर पोटली बनाकर दोपहर तक दूध में For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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