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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपामार्गादिकल्कम् ४०१ __ अपीब . पृथग्भूत सैल ही ग्रहण करें। उसे गारे नहीं। अपिङ्मियात्रा a.pin-miyaa-बर० (ब० घ०) प्रयोगाः। वृक्षाः सं०। (Tecs, shubs or Herba. अपामार्गादिकरकम apainargadikalkam I cous plants.) -60 क्ली0 (1) चिरचिटा की लुगदी। (२) अपिड़ो apindi-हिं० वि० [सं०] पिंडरहित । चिरचिटे के श्रीज को चावल के धोवन से बिना शरीर का । अशरीरी। खाएँ तो रजाश दूर हो। वृ नि. र.। अपिधान apidhāna-हिं० संज्ञा प [सं०] अपाय apāya-हिं० संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० । आच्छादन । श्रावरण । ढक्कन । पिहान। अपायी ] (1) विश्लेष। अलगाव । (२) अपिनछ apinaddha-हिं० वि० [सं०] नाश। (३) उपद्रव। -वि० [सं० अ-नहीं ना० अपिनद्धा ] बंधा हुश्रा। जकड़ा हश्रा। । टैंका हुश्रा । +पाद, प्रा० पाय-पैर ] बिना पैर का । लैंगड़ा । | अपिहित apihita-हिं० वि० [सं०] [ श्री० अपाहिज । अपिहिता] श्राच्छोदित । ₹का हुा । प्रावृत्त । अपारदर्शक apara-larshaka-हिं० वि० ( भौ० वि० ) अदर्शक, अस्वच्छ । गैर अपोन apina-हिं० वि० हल्का, क्षीण, कृश शफ़्फ़ाफ़-अ० । प्रोपेक। (Opaque)-६०। (higit, Leal )।-संज्ञा पु. अफीम वे पदार्थ जिनमें से प्रकाश बिलकुल न जा सके (Opium ) अर्थात् जिनमें से प्रकाश की रेखाएँ नहीं गुजर अधीनस apinasa अपोनसः apinasa सकें । जैसे लकड़ी, लोहा, चमड़ा इत्यादि । नासिका रोग विशेष। पीनसरोग भेद । अपालापर्म apālāpa narmna-सं०क्ली. लक्षण-जिस मनुष्य की नाक रुकी हुई सी पृष्ठवंश ( कशेरुक) और वन के मध्य भाग में ! हो, धुवा से घुटी हुई सी, पकी हुई और कदित दोनों ओर कंधों के अधोभाग में "प्रपालाप" गीली सी हो और सुगंध एवं दुर्गन्ध को न नाम के दो मर्म है। इनके विद्ध होने से कोष्ठ मालूम कर सके उसे अपीनस का रोगी जानना रुधिर से भर जाता है और इसी रुधिर को राध चाहिए। यह विकार कफ वायु से होता है और (पूय, पीब ) में परिणत होने पर रोगी मर जाता प्रायः लक्षण प्रतिश्याय के से होते हैं। सु० है, अन्यथा नहीं । चा । शा० ४ अ०। चि.२२० । च.चि. 1 (Dryness of अपावर्तन pavartana-हि. संज्ञा प्र! the 11080, want of the pituitary [सं०] (१ ) पलटाव । वापसी । (२) secretion & Loss of smell ). भागना । पीछे हटना । (३) लौटना। अपीनस में कफ बढ़कर नासिका के सम्पूण अपास नम् ॥pāsa nam-सं० क्ली. मारण । स्रोतों को रोक कर बुधुर श्वास युक्र और पीनस श्रम । से अधिक एक प्रकार का रोग उत्पन्न कर देता अपाह(हि)ज apāhai, hi-ja-हिं० वि० [सं० है, जिसे अपीनस कहते हैं। अपभज, प्रा० अपहज ] (१) ( Lazy, ! लक्षण--इसमें रोगी की मासिका भेड़ की cripple,) अंगभंग। खंज । लूला, लँगड़ा । नासिका की तरह झरा करती है । तथा पिच्छिल (२) पालसी-बेकार । पीला, पका हुश्रा और गाढ़ा गाढ़ा नासिका का अपि api-अव्य० [सं०] (१) निश्चयार्थक । भी। मल निरंतर निकलता रहता है । वा० उ. __ ही। (२) निश्चय दीक । अ० १६ । अपि apin-घर० (ए० व.) वृक्षः-सं०। अपीय apiya-हि. वि०-अपेय, पान निषिद्ध । ( Tree, sbrub, or Herbaceous Unfit to be drunk, forbidden .. plant.) liquor). For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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