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अपस्मार
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ख्याल करते हैं; किन्तु उनमें से अधिकांश प्रथम तीन को मिलाकर देते हैं ।
( 8 ) जिन अपस्मार रोगियों को ब्रोमाइड्स से किञ्चिन्मात्र भी लाभ नहीं होता, उनको बरेक्स ( टंकण ) के उचित उपयोग से प्रायः लाभ हो जाता है । इसलिए इस औषध की अवश्य परीक्षा करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त कतिपय अन्य औषध यथा श्रोमीपीन, जिंक ऑक्साइड ( यशद भस्म, यशदोमिद ), कस्तूरी, कपूर, भंग, हींग और बालछड़ प्रभृति इस रोग की चिकित्सा में बरती जाती हैं और कभी कभी इनसे लाभ होता है।
( १० ) अपस्मारी को यदि मलेरिया ज्वर ( विषम ज्वर ) हो तो स्वर को रोकने के लिए उसे कीनीन सल्फेट नहीं देना चाहिए। क्योंकि मृगी में प्रायः उससे हानि होती है । अस्तु, उसके स्थान में क्वीनोन वेलेरिएनेट या क्वीनीन श्रर्सिनेट को उचित मात्रा में देना चाहिए ।
कतिपय अन्य श्रोषध
(१) कामवासना तथा मैथुनाधिक्य वा हस्त'मैथुन आदि कारणों से हुए अपस्मार में मीनो ब्रोमेट ऑफ़ कैम्फर ( Monobromate of Camphor ) को ५५ प्रेन की मात्रा में दिन में ३ बार देने से और क्रमशः इसके ५ प्रेन के स्थान में १०-१२ मेन तक बढ़ाकर देने से प्रायः लाभ होता है | इस दवा को २-२ ग्रेनकी पर्लाजु ( मुक्रिकावत् वटिका ) की शकल में देना उत्तम है।
( २ ) रज:रोध जन्य मृगी में यह गोलियाँ लाभदायक हैं
१० ग्रेन
२ डाम
एक्सट्रैक्टाई न्युसिसवामिकी पिल्युली एलीज़ एट मिही दोनों को मिलाकर ३६ गोलियाँ बनाएँ । गोली दिन में दो बार प्रातः सायं भोजन के
(((.) यदि अपस्मार रोगी अनीमिक ( रक्कापता का मरीज ) हो तो उसको लौह के हलके योग देने चाहिए ।
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अपस्मार
उदाहरणतः - फेराई एट एमोनिया साइट्रास या डायर्नया स्टील वाइन प्रभुति देना लाभदायक होता है। मत्स्य तैल भी ( यदि पच जाए ) साधारण मृगी में लाभदायक है ।
( ४ ) वेग के पश्चात् यदि रोगी अधिक काल तक मूच्छित पड़ा रहे तो उसके सिर पर बक्रे और गुड़ी (मन्या) पर ब्लिष्टर लगाना लाभप्रद होता है।
(५) स्टेटस एपिलेप्टिक्स ( Status Epilepticus ) अर्थात् श्रविच्छिन्न अपस्मार जिसमें रोगवेग मूर्च्छा में अंत होता है तथा मूच्छा रोगवेग में । यह दशा अत्यन्त भयावह व घातक होती है। इसमें रोगी को सुरक्षित रूप से क्रोरोफॉर्म या ईथर सुधाना या मार्फीन ( अहिफेनीन ) ( ग्रेन और ऐट्रोपीन
१ ४
१ १००
प्रेम वा हायोसीन हाइड्रोयोमेट १ ग्रेन का
१००
स्वस्थ अन्तःक्षेप करना या कोरल हाइड्रेट ४० ग्रेन को ४ श्राउंस पानी में विलीन करके इसकी वस्ति (एनिमा ) करना लाभदायक है ।
अपस्मार तथा सर्प-विष
अपस्मार में मम दिवस के असर से सर्पविष ( Cobra venom ) के ग्रेज़ की मात्रा का ३-१ स्वगन्तः अन्तःक्षेप करें । फिर १४ - १४ दिवस के अंतर से प्रेमकी मात्रा
१. २००
७५
१ २५०
का दो अन्ताक्षेप और करें। बस यह काफी है; अन्यथा १-१ मास के अंतर से इसकी प्रेम की मात्रा का १ था अधिक अन्तःक्षेप और करें । इतने पर भी यदि लक्षण विद्यमान हों तो इसको 2 ग्रेन की मात्रा में या रोगी की अवस्था, प्रकृति
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वा रोग के वेग के अनुसार इसकी साम कर अन्तःक्षेप द्वारा प्रयुक्त करें।
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यह क्रोटेलस हॉरिस ( Crotalus hor• ridus या रैट्ल स्नेक ( Rattle sna ke ) जाति के साँप के किप से प्रस्तुत किया