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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "अपस्मार अपस्मार इसकी मात्रा कम न की जाए तो प्रोमिज़म (ग्रोमाइड द्वारा विधानता) के अप्रिय लक्षण · उत्पन्न हो जाते है। (इसके लिए देखोप्रोमाइड)। प्रोमाइड्स को उपयोग सम्बन्धी कतिपय आवश्यकीय सूचनाएँ (१) विस्मृति वा बुद्धिधश प्रभृति वस्तुतः । स्वयं अपस्मार के सामूहिक वा सम्मिलित लक्षण होते हैं । अतः उनको ब्रोमाइड्स द्वारा विषाकता | के लक्षण मानना भूल है।। (२) ब्रोमिज़म ( प्रोमाइड्स द्वारा विषाक्ता) के विपले प्रभात्रसे बचने के लिए उनके साथ संखिया बा बेलाडोना वा स्ट्रिकनीन (कारस्करीन) इत्यादि को सम्मिलितकर उपयोग में खाना लाभदायक है। (३) जब तक प्रोमाइड्स का पूरा पूरा प्रभाव म हो जाए अर्थात् औषध के विषैले प्रभाव प्रारम्भ न हो जाएं, तब तक उसके उपयोग को स्थगित कर देना महान भूल है। (४) मुखमण्डल वा पृष्ठ पर केवल मुंहासों अर्थात् रक्तवर्ण के दानों का निकल पाना इस बात का प्रमाण नहीं हो सकता कि शरीर में औषध का पूर्ण प्रभाव हो चुका है अथवा उसका विषैला प्रभाव प्रकट हो गया है। क्योंकि किसी किसी व्यकि में ब्रोमाइड्स को थोड़ी मात्रा में देने से भी मुँहासे निकल पाते हैं। अतएव प्राकथित अन्य लक्षणों का ध्यान रखना भी आवश्यकीय है। ' (२) ब्रोमाइड्स के सेवन काल में यदि रोगी को लक्षण रहित आहार दिया जाए तो औषधका प्रभाव शीघ्र तर एवं श्रेष्ठतर होता है। क्योंकि आहार में लवण के न रहने से यह औषध शारीर एवं वाततन्तुओं में भली प्रकार अभिशोषित होती हैं। ऐसी दशा में इसकी थोड़ी मात्रा भी 'पूर्ण लाभ प्रदर्शित करती है । अस्तु, | कतिपय डॉक्टरों के अनुभव इस बात के समर्थक है कि ऐसी अवस्था में प्रोमाइड्स को या केवल सोडियम् प्रोमाइड को ३० प्रेन की मात्रा में | प्रति दिन सेवन कराने से दिनके भीतर भीतर रोग के वेग रुक गए। (६)श्रोमाइड्स का प्रयोग कितने काल तक जारी रखना चाहिए ? रोग के वेग के रुक जाने के बाद तीन वर्ष तक ब्रोमाइड्स के प्रयोग को जारी रखना चाहिए । परन्तु तीसरे वर्ष में धीरे धीरे उसकी मात्रा घटा देनी चाहिए । अस्तु, एक वर्ष तक तो औषध को अविच्छिन्न प्रयोग में लाना चाहिए और फिर सप्ताह में एक दो दिन नागा करा देना चाहिए। डेढ़ वर्ष पश्चात् प्रति दूसरे दिन श्रौषध देनी चाहिए और दो वर्ष पश्चात् सप्ताह में दो बार औषध देना पर्याप्त है। (.) जब पैतृक ट्युबर कलोसिस (क्षय ) के कारण या अभिघात जन्य वा गिर जाने से मस्तिष्क को भाघात पहुँचने के कारण मृगी होती है अथवा बालकों को दन्तोन्नद् जन्य तथा युवाओं में उपदेश जन्य मृगी होती है तब उक्त अवस्था में रोग के मूल कारण को तदोक उपचार द्वारा दूर करना चाहिए। उन रोगों के उचित उपचार द्वारा अपस्मार को भी लाभ हो जाता है। प्रस्तु, उपदंश जन्य मृगी में पुटासियम् प्रायोडाइड से लाभ होता है और इसी प्रकार औरों को भी। अतएव जब तक असल रोग का उचित उपाय न किया जाए तब तक ब्रोमाइड्स के उपयोग द्वारा कुछ भी लाभ नहीं होता। इसी प्रकार स्त्रियों में जब ऋतु दोष वा मानसिक विकार के कारण यह रोग हो अथवा पुरुषों में अब हस्तमैथुन इसका कारण हो तो जब तक रोग के मूलभूत कारण सर्वथा दूर न हो लें तब तक केवल प्रोमाइरस के उपपोग से इस रोग को बिलकुल भाराम नहीं होता। (B) ग्रोमाइट्स से अभिप्राय है-() प्रोमाइड प्रॉफ पुटासिवम्, (ख) प्रोमाइरॉफ सोडियम्, (ग) ब्रोमाइड अॉफ अमोनियम्, (घ) प्रोमाइट ऑफ स्ट्रॅशियम् और (0) मोमाइड ऑफ़ लीथियम् प्रभृति । कोई डाक्टर तो इनमें किसी एक को अकेले ही देमा अधिक उत्तम For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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