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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपस्मार पैत्तिक अपस्मार में विरेचन और कफज में चमनप्रधान चिकित्सा द्वारा उपचार करें। घमन विरेचनादिद्वारा सब तरह से शुद्ध हुए तथा पेया पानादि द्वारा संसर्गी करके सम्यक प्राश्वासन किए हुए रोगी को अपस्मार की शांति ! के निमित्त उचित संशमन औषधों का उपयोग करना आवश्यक है। बालकों के प्रान्त्रस्थ कृमिविकार या दन्तोवेद होने की दशा में उनका उचित उपचार करें। युवाओं के आमाशय, प्रांत्र तथा यकृन की क्रिया को ठीक करें। किसी रोग के कारण यदि कोई दाँत खराब हो गया हो तो उसका उचित उपाय करें। मलावरोध न होने दें, क्योंकि इससे साधारणतः रोगका वेग हो जाया करता है । नम्बाकू, कहवा, चाय, मद्य एवं अन्य उत्तेजक औषधों से बिलकुल परहेज कराएँ। अधिक अध्ययन एवं कठिन म से बचें । उद्वेग तथा चासनानो विशेषकर काम वासनामों से एवं अन्य दुर्यसनों से सख़्त परहेज करें। चिंता, शोक, भय और क्रोध प्रभति मनोविकारों का अवलम्बन करना, अपवित्रता तथा विरुद्ध, तीक्ष्ण, उष्ण यथा मांस और अंडे प्रभति तथा भारी श्राहार करना अपस्मारी के लिए अहितकर है। स्त्रियों के अनियमित मासिक स्राव को स्वास्थ्यावस्था पर ले पाएँ । पत्र, वच, पटोल, श्वेत कुष्मांड, वास्तुक, दाहिम, शोभाजन ( सहिजन), नारिकेल, द्राक्षा, प्रा. मला, परुषक (फालसा), तैल, गदहे और घोड़े का मूत्र, अाकाश जल और हरीतकी ये अपस्मार रोगी के लिए पथ्य एवं अत्यंत हितकारक हैं । चिंता, शोक, भय, क्रोध आदि मनोविकार,अपवित्रता और समं मत्स्य, विरुद्ध अग्न, तीषण, उष्ण और भारी भोजन ये अपस्मारी के लिग अहित है। देश काल, अवस्था और प्रकृति श्रादि का विचार करके आवश्यकतानुसार निम्न योगों में से किसी एक के उचित मात्रा में उपयोग करने से अपस्मार में लाभ होता है : अपस्मार गजाङ्कश, अपस्मारारि, कल्याण चूर्ण, सूतभस्म प्रयोग, वातकुलान्तक, चण्ड भैरव, इन्द्र ब्रह्मवटी, कुष्माण्ड घृत, स्वल्प पञ्च गव्य घृत, वृहत् पञ्चगव्य घृत, महा चैतस घृत, ब्राह्मीघृत और पलङ्कषाद्य तैल, सिद्धार्थक तैल, कुमारी पासव तथा चतुर्मुख रस इत्यादि। मोट-योग, सेवन-विधि व अनुपान प्रभृति क्रमानुसार दिए जाएंगे। यूनानो वैद्यक की मत से रोग के मूलभूत कारण को दूर करें। भोजन से पूर्व व पश्चात् लधु म विशेषकर अधोशाखाओं का मईन लाभदायक है । म काल में शिर को गति न है। वक्ष व उदर से दोनों पिंडलियों तक किसी मोटे वस्त्र से इतना मईन करें जिसमें अवयव राग युक्र हो जाएँ । श्राद्विक मध्यम अवगाहन करें। चिकित्सा (१) मिश्रित दवाएँ-- नोट-अमिश्रित दवाएँ प्रागे वर्णित हैं। खमीरह, गाबजुबान अम्बरी जद्वार ज.द सलीब वाला ५ मा०, अर्क गजर (गर्हरार्क) वा अर्क गावजुबान प्रत्येक ६ तो० और शर्बत अबरेशम २ तो० के साथ देना अपस्मार में लाभप्रद है। ____ अलीफ़ल उस्तोवुड्स ७ मा० को अर्क मुण्डी ताजी तरकारी और दूध प्रभनि आहार अधिकतर उसकी प्रकृति के अनुकूल होते हैं। साफ स्वच्छ वायु में रहना, देनिक शीतल जल से स्नान करना, प्रात: साय वायु सेवन के लिए जाना, अधिक सोना, रथ्य लघु शीघ्रपाकी श्राहार का सेवन और स्वास्थ्य संरक्षण सम्बंधी नियमों का पालन करना अत्यंत उपयोगी है। अपरञ्च धूपन, अञ्जन, नस्य, शिराध्यधन (कसद खोलना), भय दिलाना, बंधन, भय, तर्जन, ताडन, हर्ष, धुम्रपान, धैर्य देना,स्नान, मईन और | विस्मय आदि भी उसके लिए हित हैं एवं लाल शालिधान्य का चावल, मूंग, गेहूँ, प्रतन, घृत, | कूर्म ( कछुए )का मांस , धन्न रसा, दुग्ध, ब्रह्मी के For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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