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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपमार्जन अपराजिता अपमार्जन apamarjana-हि. संशा० पु. (४) सिन्दूर ६ माशा को भेड़ के घी में घोट [सं.] शुद्धि । सफाई । संस्कार | संशोधन ।। कर रक्खें। इसके उपयोग से अपरस दूर होता अपमुख apamukha-हिं० वि० [सं०] [स्त्री अपमुखी ] जिसका मुंह टेढ़ा हो । विक-अपरा apari-सं० स्त्री०, हिं० संज्ञा स्त्री०(१) तानन, टेदमुहाँ। ( Placenta) खेड़ो, आँवल । भा० म०४ अपमृत्यु apamrityu-हिं० संज्ञा पुं० सं०] | भा० प्रसूतोपद्रव-चि० अमरा-सं०। (२) पदार्थ अकाल मृत्यु कुमत्यु, कुसमय मत्यु, अल्पाय. जैसे ! विद्या । (३) पश्चिम दिशा । (४) पञ्चतन्मान, बिजली के गिरने, विष खाने, साँप श्रादि के | मन, बुद्धि और अहंकार इनको अपरा कहते हैं। काटने से मरना । वि० [सं०] दूसरी । अपयोग apayoga.-हि. संज्ञा दु'. [सं०] अपराजित aparajita-सं० लहसुनिया । (.) कुयोग, बुरायोग। (२) नियमित मात्रा हिं० वि० [स्त्री० अपराजिता ] ( Inco. से अधिक वा न्यून औषध पदार्थों का योग । nqurable)जो जीता न जाए। जो पराजित (३) कुशकुन, असगुन । (४) कुसमय, न हुआ हो। कुबेला । __ संज्ञा पुं० विष्णु। अपरकाय aparakāya-हिं० संज्ञा प. शरीर अपराजित धूपः aparājita-dhupa he-सं० का पिछला भाग। पु. यह धूप सब प्रकार के ज्वरों का नाश करने अपरना apurana-हिं० बी० अपामार्ग। वाला है । गुग्गुल, गंधतृण, बच्च, सर्ज, निम्ब, वि०बिना पत्ते वाली।(Leafless). प्राक, अगर और देवदारु। च० द० ज्य. अपरम् aparam-सं० क्ली. हाथी के पीछे का चि०। अर्दू भाग, गजपश्चादर्ध । हाथी का पिछला अपराजिता aparajita-हिं० संज्ञा स्त्री सं० भाग, जंघा, पैर इत्यादि। स्त्री० ] (१) यह कोयलकी बेल्ल का साधारण अपरस aparasa-हिं. संचा पु०, उ० चम्बल । माम है। सस्क्रिय्यह, सफ़िय्यह, कश्मूल जिल्द-अ०। feffaar zafar ( Clitorea Terp. सोरायसिस (Psoriasis)-ई। चर्मरोग atea, Linn.)-ले० । बटर फ्लाई पी भेद । एक चर्मरोग जो हथेली और तस्ववे में Butterfly pea, विंग्ड-लीड्ड ब्रिटोरिया होता है। इसमें खुजलाहट होती है। और चमड़ा ( Winged -leaveil Clitoria ), सूख सूख कर गिरा करता है । विचर्चिका । इण्डियन मेज़रीन ( Indian Mezerचिकित्सा eon)-इं। बिन्टोरिया डीटनेंटी Clitoria (१) गोधूम (गेहूँ)s४ सेर लेकर पाताल de Termato-फ्रां० । फियुला-क्रिका यन्त्र द्वारा तैल निकालें । इस तेल के लगाने से Feula-criqua-पुत। अपरस नष्ट होता है। संस्कृत पर्याय-श्रास्फोता, गिरिकर्णी, (२.) पाक का दूध । छटाँक, बकुची का तेल विष्णुकांता (अ०), गिरिशालिनी (के.), १ पाव, सेंहुड़ के दूध १ छटाँक को एक पाव दुर्गा (श०), अस्फोटा (अ.टी.), गवाक्षी, तिल तैल मिलाकर सिद्ध करें इसके लगाने से अश्वखुरी, श्वेता, श्वेतभण्टा, गवादनी (र.), अपरस दूर होता है। अद्विकर्णी, कटभी, दधि पुष्पिका, गर्ह भी, सित (३) प्राठिल की जड़ की छाल लेकर स्वरस पुष्पी, श्वेतस्पन्दा, भद्रा, सुपुत्री, विषहन्त्री, निकालें और उसे भेड़ (मेष) के १ छटाँक घी में नगपर्याय कर्णी, अश्वाह्लादखुरी । अपराजिता, पकाएँ, फिर काम में लाएं। कवाठेठी, कोयल, विष्णुक्रांति, कालीज़ीर-हिं०। ४. For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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