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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मण्डखरबूजा अर्डखरबूजा - करता है। वहण विस्मृतिहर, रुक्षता, रन- को इसका तिहाई अथवा एक चाय की चम्मच निष्ठीवन, रकपरण, रकाश, भूत्रप्रणालीस्थ क्षत, भर देना चाहिए । यदि ऐन प्रतीत हो रत व प्रामाशय व यकृद् दाहहर, शीघ्रपाकी, जैसा इससे कभी कभी होता है तो शर्करा योजित कफ तथा रक्रवर्दक, कफज व वातज प्रान्ग्रकूजन- पनिमा ( वस्ति ) करने से वह दूर हो जाता प्रद है। मु. आ० । इसका परिपक्व फल उपवंश को गुणप्रद है । इसके पके हुए मुख्यतः यह केचुआनिस्सारक है। कदाना और करचे फल का अचार पीहा के रोग में (Tax.lija) पर इसका कम प्रभाव होता है। गुणकारक है। यह पाचक, सुधावर्धक, वायु. बीज में भी कृमिघ्न प्रभाव होने का वर्णन लयकर्ता, सववस्त्यहमरी निःसारक और मूत्रल * किया गया है, परन्तु इसके गुण विषयक प्रभावों है। मांस विशेषतः कबाबों के मांस को अतिशीघ्र से भलीभाँति यहं परिणाम नहीं निकलता ।' गलाता एवम् उसका दर्पघ्न है। भारतवर्ष में ' दक्षिण तथा पश्चिम भारतवर्ष और अङ्गप्रदेश प्रायः यह इसी काम में आता है। म० म०। की सभी जाति की स्त्रियों में इसके बीज के भाविप्रवर्तक गुल में प्रगल विश्वास है । उनकी यहाँ तक धारणा है कि यदि गर्भवती सी इसे भारतवर्ष में डॉ० फ्लेमिङ्ग ( १८१०ई०) मण्यम मात्रा में भी स्थाए तो गर्भपात से इसके दुग्ध के कृमिघ्न रूप से उपयोग की | अश्यम्भावी परिणाम होगा । यही पूर्वाग्रह ओर ध्यान दिलाया। इसके कथित गुणधर्म के । इसके फल खाने के खिलाफ है। तो भी पपीता प्रभास के लिए वे मि० कारटीर कोसिनी . के प्राकथित पार्सवप्रवर्तक गुणों के प्रमाणभूत : (M. Carpentier Cossigni) a arat घटनाओं की बहुत कमी है। ( बीज सशक .: से एक मनोरक्षक भाग उद्धृत करते हैं । अभी श्रावप्रवर्तक है-इं० मे० मे०) गर्भपात हेतु . हाल ही में मिल बॉटन (Mr. Bouton) ने इसके दूधिया रस का गर्भासयिकद्वार में पेसरी इसका प्रयल प्रमाण पेश किया है। जिससे यह निश्चिततया निष्कर्ष निकाला जा सकता रूप से स्थानिक उपयोग होता है। यह जमे . हुए अंशुमन का बयकर्ता है। . है कि इसके कृमिघ्न प्रभाव विपयक. वर्णन वास्त माउंस इसके पत्र, ६० ग्रेन (३० रत्ती) :. विक घटना पर स्थापित किये गये हैं। वे डा. अहिफेन तथा ६० प्रेन ( ३० रत्ती) सैंधवमारचन्द ( IDr. Lemarchand ) १.लवण इनको रगड़ कर करक प्रस्तुत करें। इसके द्वारा व्यवहृत निम्न सेवन विधि का उल्लेख स्थानिक उपयोग से गिनी कृमि (Guinea : Worn) नष्ट होती है। 'ले. कर० : । ताजे अखरबूने का दुग्ध, और शाहर, प्रश्यक काफ्स। .. . समय की मच भर इनको भली भांति मिति। .. एक चाय की चम्मच भर अंडखरबूजे के दुग्ध कर उसमें उबलसा हुआ उल ३ या ४ चम्मच तथा उतनी ही शर्करा वा परस्पर मिलाकर इसकी भर धीरे धीरे योजित करें। और अन्न यह काफी तीन मात्राएँ बनाकर दैनिक सेवन करने से नीहा शीतल होजाय तो इसे एक चूंट में पी जाएँ । एवम् यकृत वृद्धि चिकित्सा में उत्सम परिणाम इसके दो घंटे पश्चात् सिको या नीबूके रस मिले । प्राप्त हुए । एयर्स (50 में ग० फर० १८८५ . हुए एरड नेता , की एक मासा सेवन करें। ई०)। ..... : वश्यकतानुसार इसको दो दिन तक वहाबर । ... फल पुरातन अतिसार में गुणदायक होता है। सेखनको सह.पूर्व वयस्क मा ७ से १० .. इसका अपत फल कोष्ठभूदुकारक तथा मूत्रल .. केलीतर के बालक को इसकी प्राधी मात्रा है। इसका ताजा दृधिया रस. वएयलेपन देनी चाहिए और तीन वर्ष से भीतर के शिशु . (Rubifacient ) तथा दद्रु हेतु उत्तम , करते हैं For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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