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है। डिस्पेनिसा सिरप से इसकी उत्तम बटिकाएं प्रस्तुत होती है।
मॉट ऑफिसल योग (Not official preparations ).
और पेटेन्ट औषध-- (1) एलिक्सिर पेपीन ( Elixit : papain) अक्सीर जौहर पपश्यत् ।
पेपीन " भाग, मपसार (ऐल्कोहल) भाग, परितुत वारि ( लिस्टिक वॉटर) ! भाग, ऐरोमैटिक एसिक्सिर आवश्यकतानुसार
बस इतना जिससे पूरा सौ होजाए। (बी०पी० · सी.).
मात्रा---प्राधा से। ड्राम भोजन के साथ । .. (२) ग्लीसराइमम् पेपन (Glyceri
nurn papa.in) ग्लीसहीनोहर पपाह मारिवीम पपीतासरवासीमाम.साडीअमेरिक एसिड स्पट भाम, झिम्पल पशिक्सिर ५ भाग, ग्लीसरीन (मरीन) १०० भाग पर्यन्त । मात्रा-डाम भोजन के साथ ।
() ट्रॅाकिस्काई पेपोम ( Trochisci papain) पीन की टिकिया--
शति--प्रत्येक टिकिया में प्राधा प्रेम पेपीन होता है । टेम्लेट्स पेपीन, प्रत्येक में २ प्रेम पेपीन होता है।
इतिहास तथा गुण-धर्म- मागील निवासी इसको प्राचीन काल से जामते थे। अस्तु, 'अण्डखम्बूजा की नरमादा जासिको वहाँ मेमेत्री। मेको Mamao macho( नर मेमेमो या पपीता) तथा फखान्वित होने वाली बी आति । को मेमेस्रो फेमिया mamao famea (मावा पपीता) और अन्तिम की बोई जाने वाली जाति को मेमेनो मेसेनो (फीमेल मेमेनो) कहते थे। परन्तु, उसके दूधिया रस का कृमिन प्रभाव १० वी शतान्ति मसीही में ज्ञात हुआ । पश्चिम भारतीय द्वीपों में इसका मांसपाचक प्रभाव सम्भवतः प्राचीन काल से ज्ञात था। ऐसा प्रतीत होता है कि पुर्तगाल
निवासी अब इसको भारतवर्ष में लाए सब उनसे भारतीयों को भी इसके मांसपाचक प्रभाव का ज्ञान होगया; क्योंकि भारतवर्ष में भी यह बहुत काल से ग्यवहार में पा रहा है। प्रस्त, मांसको कोमल करने के लिए कच्चे अंडरव का का रस उस पर मलते हैं अथवा उसको इसके (पपया) पत्र में संपेट देते हैं। (पत्र सायनवत् है-ई. मे० मे01) मरजानुल अद्विह, तथा मुहीत प्राङ्गम प्रभृति अन्यों में भी पपरयह, * दुध इस गुण का वर्णन है कि वह गौरत की गुज़ार करसा ( कोमल करता या गला देता) और दुग्ध को जमा देता है।
" ___ मजनु अद्वियह के लेखक मीर मुहम्मद हुसेन (१७७० ई.) ने पपस्यह, पूरका सष्ट वर्णन किया है। इसके रस में बाईक को मिश्रित कर मांस के मृदु करने के उपयोग का बर्थन करते हैं। उनके बईमानुसार यह रा. निष्ठीवन, स्कार तथा प्रमालीस्थी की औषध है और जीर्य में भी हितकारी है। वा या विचचिका ( जिसमें प्रवन्त लाज उठती हो एवम् जिससे अधिक स्नेहसाव होता हो) में इसके दुग्ध को ३.४ मार लगाने से लाभ होता है।
प्रकृति-प-गर्म तर; भपक-उच्चा, सा, वृष-रवा-उस रूप, किसी किसी के मत से सईतर कक्षा में। . ....
हानिकायकृत को वा शीत प्रकृति और कफ प्रकृति बालों को । दर्पनाशक-सिकंजबीन बरी (खाँद, समर सपा सिको प्रभृति) । माहार मध्य में इसका लामा सम है। स्थावअपर कदुमा और पक्व मिस लिए स्वाद होता है।
प्रतिनिधि-हिन्दी बजार ।। मात्रा-४.मारे। गुण, कर्म, प्रयोग कोलमृदुकर, तुपाहर, प्रवाहिका, पर्स, जीरादि, कर मुखकी स्पसा तथा व न और रमा को लाभप्रद है। अशुद्ध मलोंकी त्वचा, हस्त व पाद द्वारा विसर्जित
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