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अञ्जनम्
१७८
अर्शनम्
सुरमा है । यह सीसक और गन्धक को मूषा में | उण करने से भी प्राप्त हो सकता है। यही सीसक की कृष्णा भस्म है। कदाचित् इसी भांति के सुरमाके लक्षण को जनाब शेख ईस बू अलीसीना ने मालूम करके इ..समद अर्थात् सुरमा को मत सीमा का जौहर लिखा है।
सुरमो-यह भी काले सुरमे का एक भेद है जिसमें गंधक जस्ता (यशद) के साथ मिला हुआ होला है । यह अधिक कठोर होता है। ___ सुरमहे श्रस्फहानो–सम्भव है शुद्ध होता हो । परन्तु, डॉक्टर पावल महाशय अपनी पुस्तक "एकोनोमिकल प्रॉडक्ट्स अाफ़ पञ्जाब" के पृष्ठ ११ पर लिखते हैं कि सुरमहे श्रस्फ़हानी के नमूने की परीक्षा करने पर इसमें लौह का मिश्रण पाया गया। वह पेशावर के निकटस्थ आजीर नामक स्थान के खनिज सुरमा को शुद्ध सुरमा बतलाते हैं और पर्वतीय सुरमा तथा ५. जाब के किसी किसी अन्य स्थान के सुरमा को अशुद्ध बतलाते हैं।
सफेद सुरमा-वास्तवमै खटिक धातु का एक योग विशेष अर्थात् काबोनेट श्राफ लाइम (संगमरमर ) है। अायुर्वेद के अनुसार इसको सौबीसम्जन कहते हैं। इसको लोग भूल से सुरमा समझ कर उपयोग में लाते हैं, किन्तु यह बिलकुन्न सुरमा नहीं। तोड़ने पर भीतर से यह सरमा के सदृश चमकदार होता है। प्रस्तु, इसी सादृश्य के कारण यह सुरमा खयाल किया जाता है।
अञ्जन शुद्धि (1) सब अञ्जनी की शुद्धि भांगरे के स्वरस में खरल करने से होती है ।
(२) सूर्यावर्त ( काला भांगरा अथवा हुल. हुल ) के रस में खरल करने से अजजन शुद्ध होता है।
(३) सब प्रजनों का चूर्ण कर एक दिन जंभीरी के रस में भावना देकर धूप में सुखा लेने से उनकी शुद्धि होती है तथा वे समस्त कार्यों में योजनीय हो जाते हैं।
(४) गोबर के रस, गोमूत्र, घृत, शहद तथा |
बसा इनकी बहुत बार भावना देने से सुरमा शुद्ध होता है।
(५) श्रोताअन और सौवीराजन की त्रिफला के काढ़े या भौगरे के रस में प्रौटाने से शुद्धि होती है। . (६) नीलाअन के चूर्ण को१दिन जंभीरी के रस में खरल कर धूप में सुखा दें तो यह शद्ध और समस्त रोगों में प्रयोज्य हो जाता है। इसी प्रकार गेरू, कसीस, सुहागा, कौड़ी, मैनसिल एवं मुरदासंग की शुद्धि होती है।
(७) सर्व प्रथम केले के तनेमें गढ़ा अनाएँ। पुनः अञ्जन का एक टुकड़ा उसमें रखकर ऊपर से वही केले का छिलका भर दे और इसे २१ दिन तक इसी प्रकार रहने दें। इसके बाद निकाल कर इसी प्रकार नीम के वृक्ष में उतने ही दिन तक रक्ख । इससे अजन की विशेष शुद्धि होती है। नेत्र के लिए तो यह अमृत समान गुणदायी है।
सलायह, सुरमह. (१) रक सुरमा १ तो०, काली हर जो बहुत छोटी हो ४ तो०, पृथक् बारीक करके मिलाएँ और एक दिन तक खूष रगड़ कर रख दें।
गुण-अर्श भेद और नासूर के लिए परी.
मात्रा- रत्ती से ४ रत्ती तक सवेरे, शाम को किञ्चित् गड़ के साथ मिलाकर खिलाएँ। इसके पश्चात् रोज सुबह को गोघृत और पानी पिलाएँ । ५० दिन तक लगातार सेवन करते रहें । पध्य-दो प्याज या चौलाई का साग
और घी चुपड़ी हुई गेहूँ की रोटी खिलानी चाहिए। इससे मस्से गिर जाएंगे।
(मरुजन) (२) र सुर्मा ५ तो० को निम्नलिखित पोषधियों के रसमै खरल करें । यथा-त्रिफला की छाल, माजू, माई, करथा, रसवत, गूगल प्रत्येक ५ तो०, काली हड़ यात छोटी ६ तो, कूट कर मूली के चार सेर पानी में एक दिन रात तर करके एक दो जोश देकर साफ कर लें और
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