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जिस प्रकार डॉक्टरी में किसी किसी श्रोषधि-सत्व का नाम उस उस औषधि के मूल नाम के सम्बन्ध से रक्खा गया है, उसी प्रकार आप सबों के आयुर्वेदीय तथा तिच्वी संज्ञा - निर्माण में भी उसी खूबी को ध्यान में रख कर किया गया है ।
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-विरोधी सिद्धान्त - इस ग्रंथ में प्राचीन चिकित्सा शास्त्र अर्थात् आयुर्वेदीय तथा युनानी और अर्वाचीन चिकिया शास्त्र अर्थात् डॉक्टरी के लगभग समग्र विरोधी सिद्धान्तों पर तर्कयुक्त वैज्ञानिक एवं न्यायसंनमन प्रदान किया गया है यह उनको अत्यन्त अनुसन्धानपूर्वक एवं विस्तार से लिखा गया
। आशा है इनले वैद्य, हकीम तथा डाक्टरों के पारस्परिक विशेष का बहुतांरा में निराकरण होगा. और परस्पर एक दूसरे को प्रति और शेन भाजन बनेंगे। हमने उन समस्त विरोधी सिद्धान्तों को यथाशक्य अत्यन्त के साथ लिखा है ।
६ - इतिहास - इसमें ब्रह्मा एवं धन्वन्तरि भगवान् से लेकर आज पर्यन्त प्रायः सभी प्रमुख आयुर्वेदीय, चीनी, वाचिली, मिश्री, युनानी, अरबो और यूरूपीय चिकित्सकों को खोजपूर्ण जीवनी लिखी है ।
७- विभिन्न भाषाओं का कैटेल-भिन्न भिन्न भाषा के शब्दों को नागरी लिपि द्वारा शुद्ध रूप में प्रगट करने के लिए एक बहन कैटलॉग तैयार किया गया था, किन्तु टाइप के अभाव के कारण उसे यथेष्ट रूप में प्रकाशित न किया जा सका । उसका एक छोटा सा अंश जिसमें तीन भाषा के टाइपों का संक्षिप्त परिचय है, "वर्ण-बोधिनी नालिका " नाम से इस पुस्तक के साथ लगाया गया है 1
उपयुक्त संक्षिप्त परिचय मात्र का अवलोकन कर पाठकों को वर्तमान ग्रंथ की विशालता का अनुभव तो अवश्य ही हो गया होगा । अब प्रश्न होता है कि इतने भावों से परिपूर्ण' ऐसे विशद ग्रंथ का “आयुर्वेदीय कोष" जैसा लघु नाम क्यों रक्खा गया ?
उत्तर में केवल इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि श्रायुर्वेद शब्द का जो संकुचित अर्थ श्राजकल प्रायः लोग लेते हैं, उतने संकुचित श्रथों में उक्त शब्द का प्रयोग किया जाना हमें अभीष्ट नहीं । हम तो इसे उसी व्यापक अर्थ में प्रयुक्त करना उचित समझते हैं, जिसमें हमारे ऋषिपुरुषों एवं आयुर्वेदिक पंडितों ने श्राज से कई सहस्र वर्ष पूर्व किंवा है । सुमहाराज इसकी निइस प्रकार लिखते हैं:श्रायुरस्मिन् विद्यते अनेन वा आयुर्विन्दतोत्यायुर्वेद इति ।
अथवा
( सु० सू० १ ० )
श्रायुर्हिता हितं व्याधेः निदानं शमनं तथा । विद्यते यत्र विद्वद्भिः स श्रायुर्वेद उच्यते ॥
অगा
हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिना हितम् । मानञ्च तच्च यत्रोकमायुर्वेदः स उच्यते ॥ च० सू० ॥
आप हो जाएँ कि श्रायु संरक्षणार्थ एवं स्वास्थ्य सम्पादनार्थ कौन सा ऐसा विषय है- फिर वही हो क्यों न हो जिसका समावेश श्रायुर्वेद शब्द के अन्तरगत नहीं होता । थायः संरक्षण एवं प्रकृतस्य सम्पादन के प्रायः सभी व्यापक प्राकृतिक नियमों का समावेश आयुर्वेद के अन्तर्गत हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रख कर इसके अंगरेजी नाम ( An Encyclopedi cal Ayurvedic-dictionary ) की कल्पना हुई है ।
अत्र पाठकों को यह भली प्रकार ज्ञात हो गया होगा कि यह कितना भाव गर्मित शब्द है । यही कारण है कि अनेक अन्य बड़े श्राडम्बरपूर्ण शब्दों के होते हुए भी इसीको क्यों पसन्द किया ? इतनी विशेषताओ के होते हुए भी इस जो हमको स्वयं हो रही है; परंतु वर्जन
प्रकाशन सम्बन्ध एवं अन्य बहुत बुद्धियां भी रह गई हैं, स्थिति में उनका निवारण करना हमारी शक्तिसे बाहर था ।
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