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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजवाइ ( य)न खुरासानी अजवार (य)ने ब्रुरासानी . .. वानस्पतिक विवरण-खुरासानी या किर- अर्थात् श्वेत श्रीजयुक्त है जो समस्त चिकित्सकों . मानी अजवायन वास्तव में अजवायन के वर्ग की द्वारा स्वीकृत है। उनके कथनानुसार इन सभी में प्रोधि नहीं। अपितु, यह यादान अर्थात् चकर तथा पागलपन पैदा करने का गुण है। सोलेमेसीई वर्ग की ओषधि है जिसमें बिलाडोना पारसीक यमामी बीज जो स्खोरासाम से लाया य धत्त र प्रादि विषैली दवाएँ सम्मिलित हैं। जाता है वह उक्र चारों में से प्रश्नम का ही बीज इसका जुपअजवायन के सुपसे ऊँचाई में कुछ बड़ा है । यह क्वेटा में बहुतायत से होती है। इसके होता है। पत्ते कटे हुए करेदार करोय करीब अतिरिक्त इसका एक और भेद है जिसे कोही ., गुलदाउदी के समान होते हैं। पुष्प श्वेत, अनार 2 (H. inuticus, Linn., or H. की कलियों के समान, परन्तु पईयों के कारे व Insavus, Stocks. ) कहते हैं । यह प्रत्यमध्य व मूल भाग सुर्ती मायल होते हैं। न्त विषेला होता है। देखो-कोही भंग । जिनके पकने पर मूल भाग में छत्ता सा लगता है। प्रयोगांश-वैद्यगण बहुधा इसके पीजों को जिसमें अजवायन खुरासानी के बीज लगते हैं; व्यवहार में लाते हैं और तिब्धी हकीम भी प्रायः ये अजवायन के बीज से दृने बड़े एवं वृताकार उन्हीं का अनुकरण करते हैं। प्राचीन यूनानी (जिनका पार्श्व भाग वषा हुआ होता है।) लोग तो इसके पत्तों, शाखों तथा मूल व बीज सथा धूसर वर्ण के होते हैं। बाह्य स्वचा भली अर्थात् पञ्चाङ्ग को व्यवहार में लाते थे। परन्तु, प्रकार चिपकी हुई होती है। अल्युमीन तैलीय मध्यकालीन यूरुप में इसके बोज, मूल अधिक होता है। वृक्ष गर्भ इस प्रकार (५) वक्र उपयोग में प्राते रहे। श्राजकख यूरुप व अमे. होता है, जिसका पुच्छ अङ्कुर बनता है। रिका में अधिकतर इसके पत्ते और जह न्यूनतर स्वाद-लीय, तिक एवं चरपरा होता है।। ग्यवाहत हैं। प्राचीन यूनानी व इस्लामी चिकि भेद-महजनके लेखक मीर मुहम्मदष्टुसैन । रसक तो घेत पुष्पीय बा को प्रौषध रूप बञ्ज के नाम से उक प्रोषधि का वर्णन करते हैं । उपयोग करना उत्तम ख्याल करते थे। यद्यपि वे इसके तीन भेद यथा श्वेत, श्याम तथा रक का बा स्याह के उसारह, का भी उन्होंने ज़िकर जिकर करते हैं (किसी ने पीत धुपवाले का किया है, पर अधुना यूरुप में पारसीक अमानी वर्णन किया है ) और इनमें श्वेत प्रकारको उत्तम श्याम औषध रूप से व्यवहत है । अस्तु, डाक्टर झ्याल करते हैं। प्राचीन ग्रन्थों में यही अर्थात् लोग इसकी (शुष्क या नवीन) पसियों से श्वेत प्रकार (Hyoseyamus Albus, तरह तरह के योग निर्माण करते हैं। वे पत्तियों Linn.) ऑफिशल थी । मुर्दात नासरी में को मय शाखा व फूल सावधानी से संग्रह करते इसके बीजको ब जुल बज अब ज (श्वेत पारसीक : हैं । यह उस समय किया जाता है जब खुरा. यमानी बीज ) लिखा है। प्लाइना (Piny) सानी अजवायन का पेड़ फूलने फलने लगता है ने उक्र पौधे अर्थात् हा० रेरिक्युलेटस के चार । तथा अपनी पाकावस्था में दिखाई देने लगता है। भेदों का वर्णन किया है। उनमें से प्रथम रासायनिक संगठन-हेनबेन ( पारसीक (H. reticulatus) at at arat यवानी) में एक हायोसायमीन (Hyoscyaजिसमें नीले रंग के पुष्प पाते हैं, तथा जिसका nine) नामक सरव जिसको रासायनिक रचना तना काँटेदार होता है और जो गलेशिया में धतूरीन (एट्रोपीन) के समान होती है, पाया उत्पन्न होती है; द्वितीय या साधारण प्रकार जाता है। यह विभिन्न प्रकार के हायोसायमस हायोसाइमस नाइगर (श्यामपारसीक यमानी); (ना) के बीज तथा पत्र स्वरस में हायोसीन तृतीय भेद जिसका बीज मूली के सदृश होता है ... या विकृताकार हायोसायमीन के साथ पाया जाता अर्थात् हायोसाइमस श्रारियस (H. aureus, है । इसके सूचिकाकार या निपाराकार रखे Lin.) और चतुर्थ हा० एल्बस (H.al bus): होते हैं और यह धतूरीन की अपेक्षा जल एवं For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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