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अजवाद (य) न व रासानी
अजवाद (य) न व रासानी अफ्रियून-यु० । अक्तफीत, इस्कीरास बरव० । व्यापारिक आयात निर्यात हो रहा है। विदेशों कीर्धक-देल्मी।
की उत्तम चाँजों का अपनाना और अपनी चीजें सोलेनेसीई अर्थात् धुस्तु (तू) रवा
विदेश में भेजना भारतीय अपना ध्येय बनाते रहे धत्तर वर्ग
हैं। इसी प्रकार बहुत सी ओषधियों जिनको (3.0. Sultanacee.)
हमारे पूर्वाचायौं ने रोगियों पर लाभदायक पाया उत्पत्ति स्थान-उत्तरी भारतवर्ष, ( काश्मीर, : उनका मंगाते थे। खुरासानी अजवायन भी उन्हीं गढ़वाल ) पश्चिमी हिमालय के शीतोष्ण प्रदेश। श्रीपधियों में से एक है। समस्त हिमवती पर्वत-श्रेणियों में ... से । ... प्राचीन यूनानी चिकित्सकों ने तीनों प्रकार के ११००० फीट की ऊँचाई पर यह वन की तरह वा (पारसीक यमानी ) का वर्णन किया है। उपजता है। बलूचिस्तान, (ईरान) खुरासान, ' परन्तु उनमें श्वेत प्रकार को ही श्रोषध तुल्य उपमिश्र, एशिया कूचक और साइबेरिया के अतिरिक्र य.ग में लाते थे । डायोसकाराहडीस सहारनपुर के सरकारी वनस्पस्योद्यान में भी बोया ( Dioscorides) ने भी इसकी प्रशंसा की जाता है। यूरुप, (पुर्तगाल और यूनान . है, एवं वह इसीके उपयोग करने की सिफारिश घारधे और फिनलैण्ड तक ) अमेरिका प्रादि।। करते हैं। इस सम्बन्ध में इस्लामी चिकित्सक
नाम विवरण-इसका लेटिन नाम हायो- . भी अबतक उन्हीं के अनुयायी है। साइमस यूनानी इनास कुप्रामास (Huos. : लेटिन लेखक हायोसाइमस को अल्तर्कम kuamos) से लातानीकृत शब्द है जो एक (Altercum) तथा हर्वासिम्फोनिएका यौगिक है (हुाँसयूककुनामास-याकला, (Herba, Symphonica) बोलते हैं। लोबिया)। अस्तु उक्र शब्द का अर्थ शूकर । लाइनो के कथनानुसार अरुतकर्म अरबी शब्द है। लोनिया हुा । चूं कि इसके पत्त लोबिया पनके सम्भवतः यह अत्तिर्याक का अपभ्रंश है जो मूल . सरश होते हैं एवं इसे सूअर बहुत रुचिपूर्वक में फ़ारसी शब्द है और जिसका अर्थ विपन है। खाता है इसलिए यूनानियों ने इसका यह नाम . मुसलमान लेखक इसे बन कहते हैं जो फारसी रक्खा ।
बंग का प्रारबीय अपभ्रंश है। इनके कथनानुसार नाट-महानुअद्रिया तथा मुहीताज़म | यह यूनानियों का अनियून, सिरियन लोगों का में जो इसका यूनानी नाम अफ्रोकन लिखा है यह . श्रजमालुस, मूर लोगों का करीत या इस्कीरास शुद्ध अम्यून है । कोई-कोई प्राचीन इस्लामी है। वे पुनः कहते हैं कि देल्मी भाषा में इसे हकीम इसको यूनानियों का अफ़्यून घ्याल करते कोर्सक कहते हैं। रहे। अस्तु, इसीके वर्णन में लिखा है कि कभी टिप्पणी---- ल् बञ्ज अवैज़ ( तुरुमबङ्क इसके पत्तों तथा शाखाओं का उसारह. अफ्रीम । सफेद) जो खुरासान से भारतवर्ष में अधिक की प्रतिनिधि स्वरूप उपयोग में प्राता है।। धाता है, भारतीय चिकित्सकों ने अजवायन के अक्यून यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ समान समझ उसका नाम खुरासानी या पारसीक निद्वाजनक है।
यमानी रख दिया जो अब उठ भाषा एवं तिव इतिहास-यपि उक्र बूटी हिमालय पति में अजवायन खुरासानी के नाम से प्रसिद्ध है। तथा उत्तरी भारतवर्ष व इसके अन्य भागों में भी परन्तु इस बात को भली भोति स्मरण रखना अधिकता से उत्पन्न होती है, तथापि सम्भवतः चाहिए किब अल बञ्ज (अजवायन खोरासानी) प्राचीन श्रायुर्वेदिक चिकित्सकों को इसका ज्ञान और मानवाह (अजवायन ) गुण धर्म के विचार न था। पारसीक तथा खोरासानी यमानी श्रादि से सर्वथा दो भिन्न औषधियाँ हैं। प्रस्तु, पार. नाम इसका विदेशी होना सिद्ध करते हैं।
सीक यमानी को कदापि यमानी ( अजवायन) अाज ही नहीं प्राचीन काल से ही भारत में | का भेद न ख्याल करना चाहिए ।
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