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अज़वा
भजवाहन
अनघा azavi-तु० (Aloes) पलुवा, कुमारी.
सारोवा, मुसब्बर । अजवाइन ajaviina-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं०] |
यवानिका, अजवायन, ( अ ) जवान, (अ) जमान, जवाइन-हिं । अजयान-२० । संस्कृत पर्याय-अजमोदा (-दिका ), ब्रह्मदर्भा, क्षेत्र यमानिका, भूतिकः, यवनिका, यवनी, यबानी, दीप्यः, दीप्या, दीपकः, दीप्यका, दीपनी, दीपनीयः, यवजः, यवसातः, यबसाहया, यवाग्रजः, उपगन्धा, वातादिः, भूकदम्बकः, शूलहन्त्री, उग्रा, तीवगन्धा, कारवी, भूमिकः, अग्नि गन्धा, अग्निवर्धनी, यवान, था, ब्राह्मदर्भाय, यवाह। अजोवान, जोवान, योयान, यमानी, अजवाइन, अजवान-बं० । केरम कॉप्टिकम् । (Caruin copticum, Bruth.),लिग्युस्टिश्राम अजवान ( Ligustiasni-ajowan, Road.), केरम (टाइकोटिस) अजीबान Car. um (Ptychotis ) Ajowan, ]). C. ( Fruit of- A jowan-fruit. ), अम्मी काप्टिकम (Ammicopticum)-ले० । किंग्स क्युमिन King's cumin, स्लोवेज Lovaga, fatais Bishop's weed, श्रोमम् Omum (seeds )-६० । अम्मी डी इण्डी Ammi de IInde-मां० ।। इण्डिस्कोज फ्राल्टीनोर Indisches faltemohr-जर० । माननाह., कमने- मलूकी, । ज़िम्यान-१०, फा० । श्रोमम, अमन-ता० । श्रो- ! ममु (-मी), वाममु, यामु-ते० । अयमोदकम, होमम . -मल० । बोम, श्रीमु, ओएछु, श्रीम,-कना। बोषसादा, धोवाअजमा,उवा-मह । श्रोडी अज्ञान, अजमो, जवाइन-गु०। अस्समोदगुड, अस्समोउगम, प्रोमम-सि । सम्हूम-बं० । प्रांमा-तु01 अम्मी, यासलीकन कमूनी ( मलु की)-यु०। चोहरा-कछ० । श्रीगड, प्रोम्-करना। ओम । -माला० । अजवाइन--40। जाबिनकाशा वोवा-बम्ब०। वोघो-को । लावि लार्मिसी : -मला अभ्वेलिफरी अर्थात् क्षत्री वर्ग--
(V.0. Umbllirere) उत्पत्तिस्थान-एक पौधा जो सारे भारतवर
में विशेषकर बंगाल में लगाया जाता है। यह पौधा अफरीका, दकन तथा पंजाब, मिश्र और ईरान ( फारस), अफगानिस्तान प्रादि देशों में भी होता है।
नाम विवरण तथा इतिहास-यूनानीहकीम डायोसकाराइडोज़ ( Dioscorides ) ने अम्मी ( अखीलूस ) नामक जिस अफरीकीय श्रोपधि का वर्णन किया है वास्तव में वह यही दवा है । अस्तु, हकीम जालोनूस अम्मी और कमूने मल की या किंगज़ क्युमिन ( King's cumin ) को एक ही दवा मानते हैं । फारस में भी एक इसी प्रकार का बीज जिन्यान तथा नानखाह के नाम से बहुत प्राचीन काल से प्रयोग में माता था। नानखाह (नान-रोटी+ खाह = चाहने वाला) का अर्थ "रोटी का चाहने वाला" है। चूंकि यह बुधावर्द्धक है इसलिए इसका उक्र नाम पड़ा । प्राचीन काल में ईरानी लोग जिन्पान को, वास्तव में जो नाताह ही था, तनूरी रोटियों पर लगाया करते थे। इनसीना ने नान्नाह नामसे इसका वर्णन किया है। प्लाइनी अम्मी और किंग्ज क्युमिन (कमूने मलूकी) को एक ख्याल करते हैं। हाजी जेनुलअत्तार डायोसकोराइडीस द्वारा वर्णित अम्मी को नामवाह बतलाते हैं तथा उसके औषधीय गुणधर्म के सम्बन्ध में उन्हीं चिकित्सकों की सम्मतियों को उद्धृत करते हैं। वे और भी बतलाते हैं कि उक ओषधि शोधक रूप से प्रसिद्ध है और दुष्ट प्रणों को अच्छा करने तथा उनसे दुर्गन्धि युक्र साबों को रोकने के लिए उपयोग में पाती है।
तुह.फनुल मोमनीन के लेखक तथा अन्य इसलामी चिकित्सक डायोसकोराहीज़ के अम्मी या बैसिलिकॉन क्युमिनॉन ( Basilikon kuminon) तथा फारसीयों के नान्नवाहब जिन्यान को अजवायन ही मानते और इसका . अरबी नाम कमूनुखमलको (King's cu. min) बतलाते हैं । पश्चात् कालीन यूरूपीय लेखकों का यह टिकोटिस भजोवान (Ptyc. hotis a jowan)है।
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