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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] २१ तरिक है, ( से सं जाय सरीरभवि प्रसरीग्वारिचे दबाए, ) यही ज्ञशगेर भव्यशरोर व्यतिरिक्त द्रव्य आय है । ( से तं नोघ्रागमओ दव्त्राए, ) यही नोआगम से द्रव्याय है और (सेतं दoare i) यही द्रव्य आय है । ( से किं तं भावाए ? ) भाव आय किसे कहते हैं ? (भावाए) जो भाव से लाभ हो, और वह ( दुविहे पणण, ) दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि- (आगमओ अ ।) आगम से और (नाश्रागमश्री श्र ।) नो आगम से I (से किं तं श्रागमओ भावाए ?) आगम से भाव लाभ किसे कहते हैं ? ( श्रागमश्री भावाए) आगम भाव लाभ उसे कहते हैं कि - ( जाए उधउसे ) जा उपयोग पूर्व जानता हो, (से तं श्रागम भावाए ।) यही आगम से भाव लाभ है । (नो ( से किं तं नो आगमन भावाए ? ) नोआगम से भाव लाभ किसे कहते हैं ? भाषा) नो आगम से भाव धाय ( दुविह परराचे, ) दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है (1 जहा-) जैसे कि - ( पास थे ) प्रशस्त और (सत्थे य ।) अप्रशस्त । (से किं तं पत्थे ?, प्रशस्त किसे कहते हैं ? (पस थे) प्रशस्त (तिविहं पराशे) तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि - ( याणाए ) ज्ञान भाव ( दंसणाए ) दर्शन आय और ( चरित्ताए, ) चारित्र आय, ( से पसत्थे । ) यहो प्रशस्ताय है । (से किं तं श्रपत्थे ?) अप्रशस्त किसे कहते हैं ? ( अपसत्थे) अप्रशस्त (चउष्विहे पण्णच) चार प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैस कि - ( कोहार ) क्रोध श्राय (माया) मान आय ( नाय. ए) माया आय (लाहाए) लाभ आय, (ते श्रपत्ये ।) यहो अप्रशस्त है । और (से तं यात्रागमश्री भावार ) यद्दा नाभागम संभाव हैं, (से भावा ।) यहो भाव आय है (से तं आए ।) और यहो आय है । भावार्थ-लाभ चार प्रकार का है, जैसे कि नाम लाभ, स्थापना लाभ, द्रव्य लाभ और भाव लाभ । नाम और स्थापना का वर्णन पूर्ववत् जानना चा हिये । द्रव्य लाभ दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि-आगम से और नोभागम से । शेष वर्णन प्राग्वत् जानना चाहिये, सिर्फ व्यतिरिक्त तृतीय भेद के तीन भेद है, लौकिक, लोकोत्तरिक और कुप्रावचनिक । लोकिक आय, जैसे- सचित द्विपादि, श्रचित्त सुवर्णादि, मिश्र दास दासी अश्व भल्लरीप्रमुख अलंकृत किये हुए का लाभ होना । इसी प्रकार कुप्रावचनिक लाभ जानना चाहिये । लोकोत्तरिक आय, जैसे-सचिश शिष्यादि, अचित्त वस्त्रादि, मिश्र भाण्डोपकरण सहित शिष्यादि । भाव भय के दो भेद हैं, जैसे कि-भागम से और नोभागम से । मानम For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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