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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८० [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] का लाभ हो उसे अचित्त कहते हैं, जैसे कि - ( सुवण्णा) खोना (रयय) चान्दी (मि मणि (म) मौलिक - माता ( संख) शंख (सल ) शिला बहुमूल्य पत्थर अथवा राज्याभिषेक योग्य पदार्थ (वाल) प्रवाल- मूंगा, ( रत्तरयणा) पद्मराग रत्न( * संतमावएजस्स ) विद्यमान द्रव्य का आए ) लाभ होना ( से तं चित्ते । ) यही चित्त लाभ है । (से किं तं मीसए ?) मिश्र लाभ किसे कहते हैं ? (मोसए) मित्र लाभ उसे कहते हैं जैसे - ( दातागं दासीणं) दास और दासियों का (आसाणं हत्थी) अश्व और हस्तियों का (समाभरिग्राउज्जालंकिया) सोने तथा साङ्कलादि झल्लरी प्रमुख आभूषणों से विभू पितका (ए) लाभ होना, (से तं मीसए) इसा को मिश्रलाभ कहते हैं, (से तं लोइए ।) यहो लौकिक लाभ है । + ( से किं तं कुप्पावयएि ? ) कुप्रावचनिक लाभ किसे कहते हैं ? ( कुप्पावयणिए) जिससे कुप्रावचनिक लाभ हो, और वह ( तिहि परणी ) तान प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि -- (सचित ) सचित्र (चित्त) अचित्त ( मीस ए 1 ) और मिश्र । (तिवि ) उक्त तीनों हो ( जहा लाइए, ) लौकिक जैसे होते हैं, (जाव ) यावत ( से तं मीसए ।) यही मिश्र है । (सेतं कुपात्रयणिए ।) और इसे हो कुप्रावचनिक 'कहते हैं । ( से किं तं लोगुतरिए ? ) लोकोत्तरिक लाभ किसे कहते हैं ? (लोगुत्तरिए) लोकोतरिक लाभ (तिविहे पण्णरो) तोन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि-- (सचित चिच मीतए श्र ) सचित्त अचित्त और मिश्र । (से कि तं सचित्ते ?) सचित्त किसे कहते हैं ? (सचित्ते ) सचित्त, जैसे - ( सीसा सिस्मणि ) शिष्य और शिष्यानियां साध्वियों का, ( से तं सचिते । ) इसा को कहते हैं । ( से किं तं चि १ ) अचित्त किसे कहते हैं ? ( डिग्गहाणं त्याचं ) वस्त्र पात्र (कंबलाएं) कम्बलों का ( पायपु छणा ) पादप्रोन्नादिकों का (ए) लाभ होना, (ले तं । यही चित्त है । + रक्तरस्नानि पद्मरागरत्नानि । (से किं तं मी ?) मिश्र किसे कहते हैं ? (मांसए) मिश्र जैसे - ( सिस्साएं सिरसा शिश्राणं) शिष्य और शिष्यनियों का ( सभंडोवगरणा आए) भाण्डोपकरण सहित लाभ - होना, ( से तं मीलए, ) इसी को मिश्र कहते हैं, ( से तं लोगुतरिए ) यहो लोको Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * 'संत' ' - सदू - विद्यमान, 'सावएज्जस्स' - खापतेयं द्रव्यं । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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