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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० [ श्रीमदनुयोगहारसूत्रम ] उरंगे अच्छनिउरे अउअंगे अउए नउअंगे नउए पउअंगे पउए चूलिअंगे चूलिया सीसपहतिअंगे सीसपहेलिया पलिअोवमे सागगेवमे आयसमोआरेणं आयभावे समो. यरइ, तदुभयसमोआरेणं ओसप्पिणीउस्सप्पिणीसु समोयरइ आयभावे अ, ओसप्पिणीउस्सप्पिणीओ आयसमो. आरेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोआरेणं पोग्गलपरिअट्टे समोयरइ आयभावे अ, पोग्गलपरिअ आयसमो. आरेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयपमाआरेणं तोतद्धा'अणागतद्धासु समोयरइ प्रायभावे अ, तीतद्धाश्रणागतद्धाउ आयसमोआरेगां प्रायभावे समोयरइ, तदुभयसमो. आरेणं सव्वद्धाए समोयरइ आयभावे अ। से सं कालसमोआरे। - पदार्थ-- से कि तं कालसमोसारे ? ) कालसमवतार किसे कहते हैं ? (कालसमोआर) अतिसूक्ष्म समय का वृहत समय में अवतरण करना-इसी का नाम काल समवतार है । और वह ( दुविहे पण्णत्ते, दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है (तं महा.) जैसे कि-(प्रायसमोसारे अ) श्रात्मसमवतार और (दुभयसमोआरे अं) तदु भयसमवतार, (समए अायसमोसारेणं समय आत्मसमवतार से (आयभावे) आत्मभाव में (समोयरइ,) समवतीर्ण होता है, और (तदुभर समोसारण) तदुभयसमवतार से (आ.नि. आए) श्रावलिका में ( समोयरइ प्रायभावे अ ) और आत्मभाव में समवतीर्ण होता है, ( एवमाणा पाण थोवे लवे मुहुत्ते अहोरते पक्व मासे) इसी प्रकार प्रान, प्राण, स्तोक, लव, मुहूत', अहोरात्र, पक्ष, मास (ऊऊ) ऋतु (अयण) अयन (संवच्छर) सम्वत्सर (जुगे) युग (वाससए) सौ वर्ष (वाससहरस) हजार वर्ष (वाससयसहम्स) लाख वर्ष (पुव्वंगे) पूर्वाङ्ग (पुवे) पूर्व (तुडि*ग) त्रुटितोङ्ग (तुडिए) त्रुटित (अडडंग) अडडाङ्ग (अडडे) अडड (भववं गे) अववाङ्ग (अव) अवव (होंग) हुहुअङ्ग (हुहुए) हुहु (उत्पलंगे) उत्पलाङ्ग (उप्पले) उत्पल (पउमंगे) पद्माङ्ग (प मे) पद्म (गलियांग) नलिनाङ्ग (सलिणे) नलिन अच्छंनिउरंगे) अक्षनिकुराङ्ग (अच्छनि) अक्षानकुर (अ अंग) अयुताङ्ग (अडए) अयुत नउअंग) +इन सब का विशेष वर्णन इसी भाग के पू० ६२-६४ से जानना चाहिये । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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