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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * [ उत्तरार्धम् ] से किं तं ससमयवत्तव्वया ? जत्थ णं ससमए आघ विज्ञ पराविजइ परुविजइ दंसिजइ निदंसिजइ उवदंसिज्जइ, से तं ससमयवत्तव्वया । से किं तं परसमयवत्तव्वया ? जत्थ णं परसमए afars जाव उवढंसिजइ, से तं परसमयवत्तच्वया । से किं तं ससमयपरसमयवत्तव्वया ? जत्थ गं ससमए परसमए घविज्जइ जाव उत्रदंसिजइ, से तं ससमय परमयवत्तव्या इयाणि को ओकं वक्तव्वयं इच्छइ ? तत्थ नेगमसंगहवारा तिविहं वत्तव्वयं इच्छति, तं जहा - ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तव्वयं ससमयपरसमयवत्तव्यं । उज्जुसु दुविहं वत्तव्वयं इच्छइ, तं जहा - ससमयवत्तव्वयं परसमयवन्तव्वयं । तत्थ गांजा सा ससमयवत्तव्वया सा ससमय पदिट्ठा, जा सा परसमयवक्तव्वया सा परसमयं पविट्टा | तम्हा दुविहा वत्तव्वया, नस्थितिविहा वक्तव्या । तिरिण सणया एवं ससमयवत्तव्वयं इच्छति, नत्थि परसमयवत्तव्या कम्हा ? जम्हा परसमए अट्ठे अहेऊ असावे अकरिए उम्मग्गे अणुविएसे मिच्छादंसणमितिकटु तम्हा सव्वा ससमयवत्तव्वया, नत्थि परसमयवत्तव्वया, नत्थि ससमयपरसमयवत्तव्त्रया, से तं वत्तव्या । ( सू० १५१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only २५१ पदार्थ - ( से किं तं वतव्वया ? ) वक्तव्यता किसे कहते हैं ? और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन की गई है ( वत्तव्वया ) अध्ययनादि विषयों के अर्थों का यथा -- सम्भव विवेचन करना उसे वक्तव्यता कहते हैं, अथवा गाथादिकों को अनुकूलता पूर्वक अर्थ का जो विवेचन है उसे वक्तव्यता कहते हैं और वह (तिविहा परणत्ता, ) तीन प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा-) जैसे कि - ( सस. यवत्तया) स्वसमय वक्तव्यता
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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