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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५० गणन संख्या का स्वरूप है | www.kobatirth.org [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अब इसके आगे भाव संख्या -- शंख जाननाचाहिये । भावसंख्या [सं०] विपय । से किं तं भावसंखा ? जे इमे जोवा संखगइनामगोई कम्मा वेदेति ( न्ति ) से तं भावसंखा, से तं संखष्पमाणे से तं भावपमाणे से तं प्रमाणे । पमाणेत्ति पयं समत्तं । (सूत्र १४० ) (से किं तं ?) भाव शंख किसे कहते हैं ? (जे इमे जीवा ) जो इस लोकके जीव (संखगइनगोत्ताई ) शंख गति नाम गोत्र ( कमाई ) कर्मोदिकों को (वेतिति ) वेदते हैं ( से तं भात्रसंखा ) उसी को भाव शंख कहते हैं । ( मे तं संखापमा ) यही संख्या प्रमाण है, तथा - ( सं तं भावना, ) यही भाव प्रमाणका वर्णन है ( मे तं पणे !) और यही प्रमाण है । ( पनाधिपर्व सम्मतं । ) यहाँ पर ही प्रमाण पद की समाप्ति होगई है । [सू० १५०] भावार्थ - जो जीव नीच गोत्र और तिर्यग योनि के भाव में शंख नामक जीव की गति को भोगता हो और उसी के अनुकूल जिसे नामादिक कर्मों की प्रकृतियों का उदय प्राप्त हुआ हो, उसी को भाव शंख कहते हैं । यही संख्या प्रमाण का वर्णन है । इस तरह इस स्थान पर भाव संख्या का वर्णन पूर्ण होते हुये प्रमाण द्वार समाप्त हो जाता है 1 इसके अनन्तर वक्तव्यता का स्वरूप जानना चाहिये वक्तव्यता विषय । से किं तं वक्तव्वया ? तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - स समयत्रन्त्तव्वया परसमयवत्तव्यया ससमय पर समयत्तव्वया । * यद्यपि 'संख्या' शब्द गणना का भी वाचक है, किन्तु पूर्वमें भला प्रकार से सिद्ध कर चुके हैं कि प्राकृत भाषा में संख्या शब्द शंख का भी वाचक है, इस लिये यहां पर 'भाव संख्या ' शब्द द्वन्द्रिय जीव का हो वाचक जानना चाहिये । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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