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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४७ [ उत्तरार्धम् ] उक्कोसय जुत्ताणंतय केवइय होइ ? जहण्णएणं जुत्ताणतएणं अभवसिद्धियो गुणिया अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसय जुत्तागतय होइ, अहवा जहरणय अणताणतयं रूवूण उक्कोसय जुत्ताणतय होइ,। ___ जहण्णय अणंताणंतय केवइय होइ ? जहण्णएणं जुत्ताणतएणं अभवसिद्धिया गुणिमा भण्णमण्णब्भासो पडिपुराणो जहएणयं अणंताणंतय होइ, श्रहवा उक्कोसए जुत्ताणतए रूपं पविखत्तं जहएणय अणंताणतयं होइ, तेण परं अजहएणमणुक्कोसयोई ठाणाई, से तं गणणा संखा। पदार्थ--(जहएणयं परिवाणं तय केट इयं होइ ? ) जघन्य परीत अनन्तक कितने प्रमाण में होता है ? (जहएण्य) जघन्य (असर जार र जर) असंख्येयासंख्येयक (मेराणं रासीण) मात्र राशि को (एणमरणभासो) परस्पर गुणा व.रने से (परिपुरण) प्रतिपूण (जहरणयं) जघन्य (परित्तार तयं) परीत अनन्तक (होड,) होता है, (हवा) इ.थवा (कोसए) उत्कृष्ट (असे जार र उजए स्वं पविरू) असंख्ययासंख्येयक में यदि एक रूप प्रक्षेप कर दिया जाय तो भी (जहएए यं) जघन्य (परिमाणतः) परीत अनन्तक (होड,) होता है, ( तेण परं ) उस के पश्चात् ( अजहरण मणुकीसयाई ठाए ।ई) अजघन्योत्कृष्ट ही स्थान है (जाव) यावत् (क्कोसयं) उत्कृष्ट ( परिवार तय ) परीत अनन्तक ( ण पावर) नहीं प्राप्त होते। ( उक्कोसय) उत्कृष्ट (परिणतय) परीत अनन्तक (केवाय) कितने प्रमाण में (होइ ?) होता है ? (जहएणय) जघन्य (परित्ताण्तर मेत्ताणं रासीण) परीत अनन्तक मात्र राशि को ( अण्णमएणम्भासो ) परस्पर गुणा करके उसका ( रुचूणो) एक रूप न्यून ( उक्कोसयं ) उत्कृष्ट ( परित्ताणतय) परीत अनन्तक (होइ,) होता है, (अहवा) अथवा (जहएणय) जघन्य (जुताणतय) युक्त अनन्तक का (रूवूणं) एक रूप न्यून (तकोसय) उत्कृट (परित्ताणतय) परीत अनन्तक (होइ ।) होता है। (जहएणय) जघन्य (जुत्ताणतय') युक्त अनन्तक (केवइय होर ?, कितने प्रमाण में होता है ? (जहएणय) जघन्य (परित्ताणतय मेत्ताणं रासीणं)अजन परीततक मात्र For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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