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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] २११ भाव में रहता हुआ माना जाता है + । ( से तंत्र सहिदिते ।) यही वसति का है। भावार्थ -सानों नयों का पूर्ण बोध होने के लिये द्वितीय दृष्टान्त वसति का दिया गया है। उसे निम्न लिखित प्रश्नोत्तरों से इस प्रकार जानना चाहिये- देवचन्द्र-हे प्रिय ! आप कहां पर बसते हैं ? प्रमोद चन्द्र - (अविशुद्ध नैगम नय के आश्रित होता हुआ कहने लगी कि) मैं लोक में बसता हूँ । देवचन्द्र - लोक तो तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे किऊर्ध्वलोक, अधोलोक, और तिर्यक लोक, तो क्या श्राप तीनों लोकों में बसते हैं ? प्रमोदचन्द्र - प्रियवर ! मैं केवल तिर्यक् लोक में ही बसता हूँ। (यह वि• नैगम 'नय का वचन है ।) शुद्ध देवचन्द्र - तिर्यक् लोक में जम्बूद्वीप से लेकर स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त असंख्येय द्वीप समुद्र हैं, तो क्या थाप उन सभी में रहते हैं ? alp प्रमोद चन्द्र - मेरे परम प्रिय ! मैं जम्बूद्वीप में ही बसता हूँ । (यह विशुद्ध तर०) देवचन: --- मित्रवर ! जम्बूद्वीप में दश क्षेत्र वर्णन किये गये हैं। जैसे किभारत वर्ष १, ऐरवत २, हैमवत ३, ऐरण्यवत ४, हरिवर्ष ५, रम्यक ६, देवकुरु ७, उरकुरु८, पूर्व महाविदेह है, और पश्चिम महाविदेह १० । तो क्या आप उन सभी में रहते हैं ? प्रमोदचन्द्र - सुहृद ! मैं भारतवर्ष में बसता हूँ । (यह विशुद्धतर० ) देवचन्द्र– प्रिय ! भारतवर्ष के दो खण्ड हैं, जैसे कि - दक्षिणार्द्ध भारतवर्ष और उत्तरार्द्ध भारतवर्ष । तो क्या आप उन सभी (दोनों) में रहते हैं ? प्रमोदचन्द्र - मायवर ! मैं दक्षिणार्द्ध भारतवर्ष में सता हूँ । (यह विशुद्धतर० ) देवचन्द्र - मित्रवर्य ! दक्षिणाद्धं भारतवर्ष में अनेक ग्राम, श्राकर, नगर, + जितने भी पदार्थ हैं वे सभी अपने २ ही स्वरूप में रहते हैं, अन्य स्वरूप में कोई भी निवास नहीं करता । यदि निवास करते माने जायँ तो सभी स्वरूप में रहते हैं या देश रूप में ? फिर श्राधाराधेय के भी प्रश्नोत्तर हैं, इत्यादि भावार्थ से जानना चाहिये । श्रतः सभी पदार्थ अपने ही स्वरूप में हैं, यही इन शब्द, समभिरूद और एवम्भूत नयों का मत है । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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