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[ उत्तरार्धम् ]
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शरीर वत् जानना चाहिये । तैजस और कार्मण शरीर बद्ध वैक्रिय शरीर वत्
होते हैं।
असुरकुमार देवों के श्रदारिक शरीर नारकियों के ही समान जानने चाहिये, लेकिन जो बद्ध वैक्रिय शरीर हैं वे कालसे असंख्येय काल चक्रोंके समय प्रमाण प्रतिपादन किये गये हैं, तथा क्षेत्र से असंख्येय योजनों की श्रेणियों के प्रतरका असंख्यातवाँ भाग है, किन्तु उन श्रेणियों की विष्कम्भ सूचि सिर्फ अंगुल प्रमाण ही प्रतिपादन की गई है, इस लिये उसके प्रथम वर्ग के श्रसंख्येय भाग में जितनी आकाश की श्रेणियां हों उतने ही असुर कुमारों के बद्ध वैक्रिय शरीर होते हैं, तथा उक्त वैकिय शरीर मुक्त शौधिक श्रदारिक शरीर वत् जानना । और हर शरीर दारिक वत् होते हैं । तैजस और कार्मण शरीर वैकिय शरीरवत् हैं।
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जिस प्रकार सुरकुमारों के शरीरों का वर्णन किया गया है उसी प्रकार स्तनित्कुमारादि देवोंका भी जानना चाहिये । श्रव पांच स्थावरोंके वृद्ध और मुक्त शरीरों का वर्णन किया जाता है
स्थावरों के वह और मुक्त शरीर ।
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पुढविकाइयाणं भंते! केवइया ओरालियरोग पत्ता ? गोयमा ! दुबिहा परणता, तं जहा - बद्धल्लया य मुक्केल्लया य एवं जहा ओहिया ओराजियसरीरा तहा भाणियन्त्रा, पुढविकाइयाणं भंत े ! केवइया वेडव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा- बद्धल्लया य, मुक्क ेल्लया य, तत्थ णं जे त े बद्धल्लया त रात्थि, मुक्केल्लया जहा ओहिणं ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा, आहारगसरीरावि एवं चेव भाणियव्वा, तेगकम्मसरीरा जहा एएसिं चेव ओरालिअसरीरा तहा भाणियव्वा, जहा पुढविकाइयाणं एवं आउकाइयाणं त उकाइयाय सव्वसरीरा भागियव्वा । वाउकाइयाणं भंते! केवइया
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