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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र अर्थ अनुवादकपाल प्रमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी : उमिजइ, अस्थिसंतयं असंतएण उवमिजइ ? अस्थि असंतयं संतएण उवमिजइ, अत्थिअसंतयं असंतए उवमिति / तत्थ संतयं संनएणं उवमिति, अहा संता. अरिहंता संतएहि पुरवरोहि, सतरह कवाडेहिं संतएहिं वत्थेहिं उवमिजइ तंजहापुरयरकबाड वत्था, फलियभूया दुंदुभि थणिय घोसा सिरिवच्छं किअवस्था, सम्वेषि जिणा चउवीसं // 11 // संतयं असंतएण उवमिजइ, जहा संताइ नेरइय दे. 3 अन होते पदार्थ को होते पदार्थ की औपमा दे. और 4 अन होते पदार्थ को अन होते पदार्थ की औपमा दे, इन में होते को होती औपमा सो जैसे महावीर स्वामी जैसे ही पद्यनाम तीर्थकर होवेंगे. नगर की भागल समान तीर्थंकर की वाहां होती है, नगर के वुवाड समान तीर्थंकर का कदय. इस प्रकार औपमा की गाथार्थ-नगर कमाइ समान विस्तीर्ण हृदय, भागल समान भुजा. दुंदभी समान या गारव समान गंभीर निर्घोष, श्रीवत्स स्वस्तिक से अंकित इदय, सब चौवीस ही तीर्थकरों का होता है यह सब होती वस्तु को होती वस्तु की औपमा जानना. 2 अब होती वस्तु को अन होती Eवस्तु की औपमा कहते हैं. जैसे नरक का. तिर्यच का, मनुष्य का, देवता का पल्योपम सागरोपम- का जो आयुष्य है यह सत्य परन्तु जो चार कोश कूत्र में बालन भरने की ओपमा दी है घर असत्पं है। क्यों कि ऐसा कूबा किसीने भी चालान कर भरा नहीं कोइ भरेगा भी नहीं इसलिये यह बोपमा प्रकाशक राजावहादुर छाला सुखदवसहायमी-ज्वालाप्रसादजी। / - For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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