________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सृत मल कालओ केवचिरं होइ, जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं अंतीमुहत्तं // 95 // इयाणि कोणा उकि संखं इच्छति, तत्थ णेगमं संगह, ववहारा, तिविहं संखं इच्छंति,तं एगभवयं द्धा यं. अभिमुहनाम गोत्तंच उज्जसुउ दुविहं संखं इच्छति तंजहा-बढाउयंच,अभिमुह नाम गतंत्र, तिणि सदनया अभिमह नामगोच संख इच्छति से तं जाणय सरीर भविय सर्गर, वइरित्त दव्यसंखा। सेतं नो आगमउ दवसंखा, से तंदबसंखा // 96 // से किं तं उवमसंखा? उवमसंखा / चउबिहा पण्णता तंजहा-अत्थि. संतयं संतएण E 488483 प्रमाण विषय 4880882 3. शहर में सीव के प्रदेश आने फिर दूसरी वक्त मारणान्तिक समुद्धात करे उस आश्रिय अन्तर्मुहूर्त जानना // 18 // अव यहां कौन नय शंव की माने सो कहते हैं-तहां 1 नैगम, 2 संग्रह, और 13 व्यहार सीनों शंख को मानती है. तद्यथा-१ एक भषिक. 2 बंधायु, और 3 नाम गोत्र अभिमुख 4 अाज सू नय दो प्रकार शंख का माने-. बन्धाय और 2 अभिमुख नाद गोत्र. और ऊपर की शब्दादि तीनों नय एक अभिमुख नाम गोत्र को ही मानती है, परन्तु यहां द्रव्य संख कोई मानती हैं, जघन्य एक समय अतो नजीक रहा इसलिये यह ज्ञेय शरीर भव्य शगेर व्यतिरिक्त द्रव्यसंख्या कही. और वह तो आगम से द्रव्य संख्या हुई. तैसे ही द्रव्य संख्या भी पूरी हुई // 9 // 20 अहो भगवन् ! औपमा संख्या किसे कहते हैं ? हे शिष्य ! औपमा संख्या चार प्रकार की कही है. है तद्यथ / होते पदार्थ को होते पदार्थ की औपया दे, 2 होते पदार्थ को अन होते पदार्थ की औपमा एकत्रिंशत्तम-अनयो | For Private and Personal Use Only