________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी सेणाए अग्गिमे खंधे, सेणाए मज्झिमे खंधे, सेणाए पच्छिमे खंधै, से तं मीसए दब्वखंधे // 7 // अहवा-जाणय सरीर भविय सरीर बइरित्ते दवखंधे तिविहे पण्णते तंजहा-कसिणखंथे, अकसिणखंधे अणेग दवियखंधे // 8 // से किं तं कसिणखंधे?कसिणखंधे सो चेव हयखंधे गयखंधे जाव उसभखंधे से तं कसिण खंथे ॥से किं तं अकतिणखंधे ?अकसिणखंधे सोचेव दुपएसिया खंधे जाव अणंतपएसिए खंधे सेतं अकसिण खंधे||से किं तं अणेग दवियखंधे?अणेगदविय खंधे तस्सचेव देसे * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालामलादजी कहा है. इस्ती अन्च शस्त्रादि संयुक्त सेना का अग्रिम स्कंध, सेना का मध्य स्कंध और सेना का पीछे का स्कंध. यह मीश्र द्रव्य स्कंध हुवा / / 7 // अथवा ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य स्कंध के तीन भेद कहे हैं जिन के नाम-१ कृत्स्न (प्रतिपूर्ण) द्रव्य स्कंध, 2 अकृत्स्न अप्रतिपूर्ण द्रव्य स्कंध.. और 3 अनेक दृष्यवाला स्कंध // 8 // अहो भगवन् ! कृत्स्न द्रव्य स्कंध किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! पूर्वोक्त अश्व स्कंध गज स्कंध वगैरह कृत्स्न स्कंध है. विप्रदेशिक त्रिपदेशिक यावत् अनंत पदेशिक वगैरा में अकृत्स्न द्रव्य स्कंध है, और अहो भगवन् ! अनेक द्रव्य स्कंध किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! सचित्त मनुष्य पशु आदि के शरीर का नख वगैरह जीव के प्रदेश रहित होवे तथा जीव प्रदेश सहित होये उसे For Private and Personal Use Only