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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir : कयं, बलदेवेण बलदेव सरिसंकयं, वासुदेवेणं वासुदेव सरिसकयं साहुणा साहु सरिसकयं से तं सव्व साहम्मे / सेत साहनात्रणीते / / 78 // से किं तं देहामायणीते वेहम्मोवणीते-तिविहा पण्णत्ता तंजहा-किंचिवहम्मे, पायवेहम्मे, सव्ववेहम्मे // 79 // से किं तं किंचि वेहम्मे? किंचि वेहम्मे जहा साबलेयो न तहा बाहलेयो,जहा बाहुलेयो नतहा साबले उ सेत्तं किंचि वेहम्मे // 80 // से किं तं पायवेहम्मे ? पायवहम्मे एकत्रिशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल 803-प्रमाण विस्य < चक्रवर्ती चक्रवर्ती समान. बलदेव बलदेव रूपान, वासदेव वासुदेव समान, साधु साधु समान, इत्यादि। सर्व साभिक पना जानना. यह सर्व मार्मिक उपबित हुआ. // 78 // अहो भगवन् ! वैधाँपमित किले " कहते हैं ? अहो शिष्य ! पेय पनित तीन प्रकार को है. तबधा-१ किंचित वैधर्मोपनित. * प्रायः वैधोपनित, 3 और स वैषमापनित।। 7 // अहो भावन् ! किचित् वैधमोनित कि कहते हैं ? अहो शिष्य ! किंचित पैदानित सोसायगाय का बच्छा सा श्वेत गाय का बच्छा नहीं. और जैसा श्वेत गाय का बच्छा सैसा वाम गाय का नहीं. यह किंचित वैधर्मोपानत हु. // 80 // अहो भगवन् ! प्रायः ( बहुत ) वैधर्मोपनित किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! जैसा वायस ( काग ) होता है तैसा पायस ( गाडी का चक्र ) नहीं. वह सजीव परिभ्रमण करता है और वह >BR0 498 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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