________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org A 4. अजुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी जहा सरिसवो तहा मंदरो, जहा समुद्दो तहा गोप्पय जहा गाप्पेयं तहा समुद्दो. जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खजातो तहा आइचो, जहा चंदो तहा कुमुदो, जहा कुमुदो तहा चंदो, से तं किंांचे साहम्मो // 76 / / से किं तं पाय- 218 साहम्मो ? पायसाहम्मो जहागो तहागवओ, जहा गवओ लहानो, से तं पायताहम्मे // 77 // से किं तं सव्व साहम्मे ! सव्व लाहम्मे उबने नत्थि तहावि तेणेव तस्त्र उवमं कीरति, जहा अरिहंतेहि अरिहंत सरिस कयं, चक्कवधिणा चावटि सरिसं किंचित साधर्मोपनित सो जैसा मेरु पर्वत तैमा सरिसव, और जैसा सरिसब तैसा मेरु. जैसा समुद्र तैसा गोपय-गाय के खुर स्थान रहा पानी बरसा गौपदलेला समुद्र. जैसा सूर्य तैसा खयोत-आगीया.जैसा खद्योत तैसा सूर्य, जैसा चन्द्र तैसी कुमुदनी जैसी बुदनी तसा चन्द्र. यह किंचित साधर्मिकपनः कहा / / 76 // अहो भग-2 वन : विशेष साधर्मिकपना किसे कहते है! अहो गिना जैसा बैक तैसा रोझ. जैसा रोझ तैसा वैच,यह विशेष साधर्मिक पना कहा // 7 // अहोगवन ! सवा पालिने ? भोप ! जहां औपमा नहीं उस का उस की औपमा कहना. जैसे वे अरिहंतने उन अरिहे। सरिखे हैं. अरिहंत के समान 4. * नीर्थ स्थापन्न अतिशयादि कार्य अन्य के नहीं होता है. इसलिये सर्व साधभिकपना जानना. तैसे ही है। *काशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी* For Private and Personal Use Only