________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र 28 N एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल चउबिहा पण्णत्ता तंजहा-खंधा, खंधदेसा,खंधप्पएसा, परमाणु पोग्गलतेणं भंते! 14 किं संस्खजा असंखजा अणता ? गोयमा ! नो असखजा, नो असंखेजा अणंता से केणट्रेण भंते ! एवं वुच्चइ नो संखज्जा नो असंखजा अणता ? गोयमा ! परमाण पोग्गला अणंता, दुपएसियाखंधा अणंता, जाव अणंत पएसिया खंधा अणंता से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति नो संखेजा नो असंखज्ज अणंता // अहो गौतम ! रूपी अजीव द्रव्य चार प्रकार के कहे हैं. तद्यथा-१ पुद्गलों का स्कन्ध, 2 पुगलों का देश, 3 पुद्गलों के प्रदेश और 4 परमाणु पुद्गल. अहो भगवन् ! यह स्कंध देश प्रदेश परमाणु रूप पदलों हैं सो संख्यात हैं कि संख्यात हैं कि अनन्त हैं ? भो शिष्य ! संख्यात असंख्यात नहीं है परंतु अनन्ते हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा कि संख्यात असंख्यात नहीं है परंत अनंत हैं? अहो शिष्य ! पग्माणु पुद्गल भी अनन्त हैं, द्विप्रदेशिक स्कन्ध जो दो परमाण पगल के संयोग से बना वह ] भी अनन्त हैं. यावत् संख्यात प्रदेशी स्कन्ध भी अनन्त हैं, असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध भी अनन्त है और अनन्त प्रदेशीक स्कन्ध भी अनन्त हैं. अहो शिष्य ! इस लिये ऐसा कहा है कि पुद्गलों / संख्यात असंख्यात महीं है परंतु अनन्त हैं, अहो भगवन् ! जीव द्रव्य कितने हैं दया सं कि असंख्यात बैंकि-अनंत हैं? अहो शिष्य ! संख्यात असंख्यात नहीं हैं परंतु अनन्त हैं. अमे भगवन् / +8 For Private and Personal Use Only