SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 252 * अनुवादक बाल अमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी देवाण ? गोयमा / जहण्णेणं चउभाग पलिओवम उक्कोसं अद्धपलिओवम, णक्खत्त विमाणाणं भंते ! देवीणं ? गोयमा ! जहण्णेणं चउभाग पलिओवर्म, उकासेणं सातिरेगं च उभाग पलिओवमं, ताराविमाणाणं भंते ! देवाणं ? गोयमा ! अहण्णेणं सातिरेगं अट्ठभाग पलिओवमं उक्कोसेणं चउभाग पलिओवम, ताराविमाणाणं भंते ! देवीणं केवतियं कालंठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभाग पलिओवमं उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभाग पलिओवमं // 42 // विमाणियाणं भंते ! देवाणं केवइयं कालंठिइ पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमं उक्को सेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं, वेमाणिणीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालंठिती पण्णता? तारा विमानवासी देवता की जघन्य पल्योपम के आटवे की उत्कृष्ट पाव पल्योपम की. ता {विमानवासी देवी की जघन्य पल्य के आठवे भाग की उत्कृष्ट कुछ अधिक पल्य के आठवे भाग की / / 41 // समुच्चय वैमानिक देवता की जघन्य एक पल्योपम की. उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की. समुच्चय वैमानिक देवी की जघन्य एक पल्य की उत्कृष्ट पञ्चावन पल्य की. सौधर्म देवकोक के देवता की मघन्य एक पल्योपम की उत्कृष्ट दो सागरोपम की. सौधर्म देवलोकवासी परिग्रह देवीकी जघन्य एक पल्यो प्रकाश राजाबहदुर शला सुखदेवसहायजी ज्वालांमसादजी For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy