________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र 251 -मोगदारसूत्र -चतुर्थ काम गोयमा ! जहन्नेणं चउभाग पलिओनमं, उचोलणं अपलि ओवमं पण्णासाए कारहरहिं महियं, सूरबिगाणा भंते ! देवाणं ? गोला / जहणं घमाग पनि उहको पाल आवमं वासलहा मोर सूचनाणाणं भंते ! देवीणं ? गोयभा ! जहन्नं च उभाग पलिओवमं, उक्कोसं अद्धपलिओवमं पंचहिवाससरहिं मभहियं. गहविमाणाणं भंते ! देवागं ? गोयमा ! जहणं चउभाग पलिओरमं, उक्कोसं पलिओत्रमं, गहविमाणाणं भंते ! देवीणं ? गोयमा ! जल्योगं चड साग पशिओरम, उकोसं अहपलिओवमं, णक्वत्तविभाणाणं भंते ! देवी की जघन्य पल्पोपय के चौथे भागभी उत्तष्ठ आधा पल्योपम पचास हजार वर्ष की. सूर्य विमान देव की जघन्य पल्पोपप के चोरेगा की उन्कर एक पल्योपम एक हजार वर्ष की, सूर्य विमान दली जयन्य पार पल्मोगा क प ल्य का यो की यह विपानवासी देवता की। पापा काकी उत्कृष्ट एक पतलीपर का विधानवासी देवी की जघन्य पात्र पल्योपम की उत्कृष्ट आरी पल्यापम की नक्षत्र विमानवाली देवता की जघन्य पाय पस्योपम की उत्कृष्ट आधे पल की, नक्षत्र विमानवासी देवी की जघन्य पार पल्यापम की उत्कृष्ट कुछ अधिक पाव पल्यापम की. Ra><283> प्रमाण विषय 48888 For Private and Personal Use Only