SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - एकत्रिंशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र-चतर्थ मूल -- भागनिप्पन्ने, से तं खेत्तप्पमाणे॥२३॥से किंतं कालप्पमाणे? कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-पदेस निष्फन्ने, विभाग निप्फन्नासे किं तं पदेसनिप्फन्ने ? पदेस निप्फन्ने एग समय टिईए, दुसमयट्टिईए, ति समयढिईए, जाव दस समयद्वितीए, संखेज समयद्वितीए, असंखेजसमए ठिबीए से तं पदेस निप्फन्ने // 24 // से किं तं वि भागानप्फन्ने ? विभाग निप्फन्ने ! 1 समया, 2 आवलिय 3 मुहुत्ता, 4 दिवस, 5 अहोरत्त, 6 पक्ख, 7 मासाय, 8 संवच्छरं, 9 जुग, 10 पलिया, ११सागर निष्पन्न क्षेत्र प्रमाण हुआ। और यह क्षेत्र प्रमाण भी हुआ // 23 // अहो भगवन् ! काल किसे कहत हैं ? अहो शिष्य काल प्रपाण दो प्रकार के कहे हैं. तद्यथा-१ प्रदेश निष्पन्न और 2 विभाग निप्पन्न / / अहो भगवन् ! प्रदेश निष्यन किसे कहते हैं ? अहे शिष्य ! प्रदेश निष्पन्न काल प्रमान से-एकसमय स्थिति वाला. दो समय स्थिति वाला, तीन समय स्थिति वाला, यावत् दश समय की स्थिति सख्यात, काल समय की स्थिति वाला, और असंख्यात समय की स्थिति बाला, यह प्रदेश आनष्पन्नहआ॥ 24 // अहो भगवन ! विभाग निष्पन्न वि.से कहते हैं। अहो शिष्य ! विभाग निष्पन्न सा-१समय 2 आंवलिका, 3 मुहूर्त, 4 दिन, 5 अहो रात्रि, 6 पक्ष 7 माहेने 8 सामः 111 84880ममाण विषय 8-800 | For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy