________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *अनुवादकबालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिनी जोगिएय // अविसेसिए चउप्पय थलयर पंचिदिय तिरिक्रूजोणिए, विसेसिए समुच्छिप चना लयर पनिदिय तिरिक्रपजोगिएय, गम्भवक्कंतिय चउप्पय थलयर पारिय लिरिक्खजे गएष // आले.लिए समुच्छिम चउप्पय थलयर पंचिंदिय तिरिक्सजेगिर,विलेलिए-पजन्तय समुच्छिाप्पय थलयर पंचेंद्रिय तिरिक्खजोणिय अज्जत्तय लनुच्छिम च उप्पय थलपर पंचिदिए तिरिक्वजोगिए // अदित्तेसिए. गभवतिय चउपायलयर पविदिय तिरिक्खजाणिए, बिसेलिए- जत्तय गम्भ. वतिय चाय थल पर पंबिंदिय तिरिरन जोणिय, अपगत्तय गन्भवतिय च उप्रय बलयर पंचिोदेश तिरिक्खासिएम // असिमित-परिसप्पथलयर पंचिंदिय विशेष या वगन च पलचर तिय या पवित्र मच्छिम स्थलचर वियंच पंचेन्द्रिय ॐ और विशेष में परमात निधनाइप : स्थलचा तिच पंचेन्द्रिय अविशेष में गर्भन चतुष्पद स्थलचरी तिर्यंच पंवे प्रोवि वानव अपक्ष चतुष्पद स्थरचरतियच पचेन्द्रिय.अविशेष में परिसर्प स्थलचर तिविपचे न्द्रय और विशेष में उरपरिसर व शुजपरि स्थावर तियेच पंचेन्द्रिय. इन दोनों के संपूच्छिम पर्यास व अपात वैसे ही नज, 16 व अर्शत यों भेद करना. आवेशेषिक खेचर काशक-राजावहादुर लाला मुखदवसहायजी चालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only