________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 8+ एकाशिचम अनुयोगद्वार सूत्र- चतुर्थ अनुयोगद्दार मूत्र की प्रस्तावना. 26 नमोस्तु सर्वज्ञदेवान्.शास्त्रविज्ञान दातार॥अनुयोगद्वार मूत्रस्ये,करोमि भाषानुवादकः // 1 // / चत्वारिंमुख्य अनुयोगा,करण चरण गणितानयः॥धर्मकथास्य स्वरूप:अनुयोगद्दार प्रकाशकः२, " जो सर्वज्ञ देवाधिदेव शास्त्र विज्ञान के दातार हैं जिन को नमोस्तव करके जिस में , करणानयोग जो कारण मे किया कि नाम जैसे पांच समिती आदि, 2 चरणानयोग जो सदैव पालन किये आय जैसे पंचमहाव्रतादि. 3 गणितानुयोग सो संख्य असंख्य अनन्तादि और 4 धर्मकथानुयोग सम्बेगनी आदि / धर्मकथा. इन चार अनुयोग का सम्यक प्रकार से स्वरूप का प्रकाशक जो यह अनुयोगद्वार शास्त्र श्री जिनेश्वर प्रकाशित और गणधर रचित है. इस का हिन्दी भाषामय अनुवाद करता हूं. ___ अन्य शास्त्रों से यह शास्त्र बहुत गहन कहा जाता है और है भी तैसा,इस में आवश्यक निक्षेप प्रमाण अनुपूर्वी वगैरा का बहुत सूक्ष्मता के साथ किया है. इस तरह पंजाब देश पावन कर्ता उपाध्यायनी श्री आत्मारामजी कृत हिन्दी भाषानवाद का पूर्वार्ध पर से और एक प्रत मेरे पास जो तीनों की दीक्ष में, लीगई था उस पर से किया है. इसमें जो जो अशुद्धियों रहगई है उसे विशेषज्ञों शुद्ध कर पढ़ेंगे। परम पूज्य श्री कहामजीऋषि महाराज के सम्प्रदाय के बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी ने सीर्फ तीन वर्ष में 32 ही शाखों का हिंदी भाषानुवाद किया. उन 32 ही शास्त्रों की 100010.. प्रतों को सीर्फ पांच ही वर्ष में छपवाकर दक्षिण द्राबाद निवासी राजा बहादुर लाका मुखंदवसायजी ज्वालाप्रसादजी ने सबको रन का अमूल्य लाभ दिया है। 49398 प्रस्तावना 42837 For Private and Personal Use Only