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शर्करायुक्त माहिष दधि अथवा माहिष पयका अथवा अर्कत्वचा ('करीरत्वचा ? ) के चूर्णका जलके साथ पान करनेसे कर्णवीर-करवीर विकारोंकी शान्ति होती है ।।१३।। ३९ वज्रिविकारशान्तिः
शीतवारि सितायुक्त पाने वज्रिविषापहम् । वस्रवायुः तथा कार्यः शीतच्छायां च सेवयेत् ॥१४ ।
शर्करायुक्त शीतल जलका पान करनेसे वज्रीविषके विकारोंकी शान्ति होती है । वज्रोविपके विकारवाले व्यक्तिको शीतल छाया और वस्त्र वातका सेवन करना चाहिए ।।१४।। ४० स्नुह्यर्कविकारशान्तिः
चिंचापत्रं जले पिष्ट्वा मईयेत् शान्तिकृत् सदा । हैमगिरिजले पाने स्नुही चाविकारनुत् । १५।।
चिंचापत्रको जलमें पीसकर शरीरमें मर्दन करनेसे और सुवर्णगैरिक युक्त जलका पान करनेसे स्नुही और अर्कके विकारोंकी शान्ति होती है ॥१५॥ ४१ दन्तीवीजविकारशान्तिः
धान्यकं सितया युक्त वारिमर्दितपानत: । तस्य दन्तीबीजजात विकार शान्तिकृत् सदा ॥१६।।
१ अनुपानमंजरीको उपलब्ध गुजराती टीकामें अर्कत्वचाके अर्थके रूपमें
करीरत्वचा लिखा है यह शास्त्र सम्मत नहीं है । २ दधिना सह य: पिबेत् इति ज पुस्तके पाट: ।। ३ निवृत्तिस्तस्य जायते इति ज पुस्तके पाठः ।
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