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शर्करायुक्त मेघनादरस अथवा केवल दुग्ध सेवन से उचटा-गुंजाके विकारोंकी शान्ति होती है ॥९॥ ३५ मद्यविकारशान्तिः
मधुखर्जूरीमद्वीका वृक्षाम्लाम्लाश्च दाडिमः । परुषः सामलकश्चौव युक्तो मद्यविकारनुन ॥१०॥
मधु, खजूर, द्राक्षा, वृक्षाम्ल, अम्ला रसवाले अन्य द्रव्य, दाडिम, फालसा तथा आमलक का सेवन करने से मद्यके विकारों की शान्ति होती है ।।१०॥ ३६ पूर्वीफलविकारशान्तिः
पूर्वीफलमदे शीतवस्त्रवातः हितो भवेत् । शर्करा भक्षणे देया मधु वा शर्करान्वितम् ॥११॥
पूगीफलसे उत्पन्न मदमें शीतल वस्त्रवायु हितकारी होता है । एवं खाने के लिए केवल शर्करा अथवा शर्करायुक्त मधु देना चाहिए ॥११॥ ३७ कोद्रवविकारशान्तिः
कोद्रवाणां भवेन्मूर्छा देय क्षीर सुशीतलम् । सगुड कूष्माण्डरसो हन्ति मदं तु कौद्रवम् ॥१२॥
कोद्रवसे उत्पन्न मूर्छा में सुशीतल क्षीर और कोद्रवसे उत्पन्न मदमें गुडयुक्त कुष्माण्ड रसका सेवन करना चाहिए ।।१२।। ३८ कर्णवीरविकारशान्ति.
सितायुक्त सदा देय दधि वा माहिष पयः । तथा चार्कत्वधा पीता कर्णवीरविषापहा ॥१३॥
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