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७७ अमृतसागरतथाप्रतापसागरतरंग ४ जाय ४ अरपांचअजीर्रादिनपाकीयेकरातिदिनमेंपचैनहीं दूसरे दिनभूषलागै योगायोनिरदोषछै ५ अरछगेअजीर्णसनैसिद्धिस दाहीरहे वेनेप्रतिवासरकहिजे यांचांपसवाडाकासोवा गरमपाणी पीवासू मिहनतकरबासू हरडैकापावासू योजाय ६ अथामा जीर्णकोलक्षालिष्यते सरीरभारयोहोय वमनकीइछारहै जि सोभोजनकस्योहोय उसीहीडकारावै कच्चोहीमलजाय अथ विदग्धाजीर्णकोलारालिष्यते भ्रमहोय निसहोय गरमीका नानाप्रकारकारोगहोय धूंचांनेलीयांषारीडकारावै दाहअरप सेवहोय २ अथविष्टयग्रजीर्णकोलक्षगलिष्यते पेटमैंसू लहोय आफरोहोय वायकीनानाप्रकारकीपीडाहोय अरमला धोवायरुकिजाय सरीरजकउबंधहोय ३ अथरससोषअजी रणकोलक्षालिष्यते अन्नमेअरुचिहोय हियोदूषेसरीरभास्यो होय ४ अथग्रजापकाउपदवलिप्यते मूळहोय प्रलापहोय वमनहोय अंगमैपाडाहोय प्रमहोय येअजीमैपदवहोयतो ओमरिजाय५मूर्षादमीअजामैपशकीसीनाईभोजनकरैआदमीकेअनेकरोगहोयछै सत्यवांवछेसोदोसांसूबंधहोयवो अग्निकामारगनेंरोकैनहीं तदिअजीर्णमेभीभूषलागे वेंकचीभू षमैंजोषायसोपुरषमरिजाय अथविसूचिकाकोलक्षालि ष्यते पुरषकेमंदाग्नि पथमामाजीहोय पछैवेमैमूर्षपर्णा सूपसुकीसीनाईघीगरिष्टवस्तषाय नदिवेकै विसूचिकाहोय जाँकेमू होय अतीसारअरवमनभाहोय अरतासमाहोयपेटमें अथवा औरठेभीसूलहोय भ्रमहोय पीडीफूटेजंभाईआवै दाह होयसरीरकोवर्णऔरसोहोजाय कापणीहोय हियोमांथोघणे
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