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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७ अमृतसागरतथाप्रतापसागरतरंग ४ जाय ४ अरपांचअजीर्रादिनपाकीयेकरातिदिनमेंपचैनहीं दूसरे दिनभूषलागै योगायोनिरदोषछै ५ अरछगेअजीर्णसनैसिद्धिस दाहीरहे वेनेप्रतिवासरकहिजे यांचांपसवाडाकासोवा गरमपाणी पीवासू मिहनतकरबासू हरडैकापावासू योजाय ६ अथामा जीर्णकोलक्षालिष्यते सरीरभारयोहोय वमनकीइछारहै जि सोभोजनकस्योहोय उसीहीडकारावै कच्चोहीमलजाय अथ विदग्धाजीर्णकोलारालिष्यते भ्रमहोय निसहोय गरमीका नानाप्रकारकारोगहोय धूंचांनेलीयांषारीडकारावै दाहअरप सेवहोय २ अथविष्टयग्रजीर्णकोलक्षगलिष्यते पेटमैंसू लहोय आफरोहोय वायकीनानाप्रकारकीपीडाहोय अरमला धोवायरुकिजाय सरीरजकउबंधहोय ३ अथरससोषअजी रणकोलक्षालिष्यते अन्नमेअरुचिहोय हियोदूषेसरीरभास्यो होय ४ अथग्रजापकाउपदवलिप्यते मूळहोय प्रलापहोय वमनहोय अंगमैपाडाहोय प्रमहोय येअजीमैपदवहोयतो ओमरिजाय५मूर्षादमीअजामैपशकीसीनाईभोजनकरैआदमीकेअनेकरोगहोयछै सत्यवांवछेसोदोसांसूबंधहोयवो अग्निकामारगनेंरोकैनहीं तदिअजीर्णमेभीभूषलागे वेंकचीभू षमैंजोषायसोपुरषमरिजाय अथविसूचिकाकोलक्षालि ष्यते पुरषकेमंदाग्नि पथमामाजीहोय पछैवेमैमूर्षपर्णा सूपसुकीसीनाईघीगरिष्टवस्तषाय नदिवेकै विसूचिकाहोय जाँकेमू होय अतीसारअरवमनभाहोय अरतासमाहोयपेटमें अथवा औरठेभीसूलहोय भ्रमहोय पीडीफूटेजंभाईआवै दाह होयसरीरकोवर्णऔरसोहोजाय कापणीहोय हियोमांथोघणे For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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