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७६ अमृतसागरतथाप्रतापसागर तरंग ४ वस्त आदिलेरलूषोअन्लजोषाय तीकैकफपटैपरवायपित्तवधै तदिपित्तहेसोपवन प्रेसोथकोभस्मकअग्निनैरोगरूपपैदाकरे तदिजोषायसोएकस्याइनमेंभस्महोयजाय ईनेभस्पकरोगकहिजे योतिसदाहमूर्जानेंगरकरिभोजकरयानेषायसारीधानांनषायजा यछे योमारिनांषैछै ५ अथजीर्णरोगकाउत्त्पत्तिलिष्यतेघगो पाएगीपावै विसमानस भोजनकरेमलमूत्रकावेगनैरोके दिन मेसोवेरातिनेसोचैनहीं इसापुरषकैपथ्यभोजनभीपाछीतरै पचे नहीं अथवा इतनीवस्त मनुष्यकैयाछीतरहअंनपचैनहींजीं कैअष्टप्रहरईर्षारहबोकरे भयरहबोकरै क्रोधरहबोकरे लोग रहबोकरै कोइकरोगरबोकरै दीनतारहबोकरै आछ्योमनमाफि कभोजनमिलेनहींतीपुरसकेभोजनाछीतरैहपचैनहीं अथ अजीरणकोसामान्यलक्षगलिष्यते मनमैंग्लानिरहै सरीर भारयोरहै उदरमैंग्राफसेरहे भ्रमरहेगुदाकोपवनाछीतरह चलैनहीं बंधकुष्टहोयावे अथवा वारंवारपतलामलकीप वृत्तिहोययेजीमेंलक्षणहोयतदिजाणिजेमनुष्यके अजीछे। अथअजीर्णकोभेलिष्यते अजाप्रकारकोछे येकतो प्रामकहिजे मीठोकच्चोहीभोजनगुदाहाराजाय अरजीकैकफकी प्रतिकरिमंदाग्रिहोयजीकेअरटूसरोविदग्धक्योंयेकवल्यो षटाईनौलयांमलगुदाद्वाराजायजीकैपित्तकीप्रकृतिकरितीक्षाअग्निहोयजीकै २ अरतीसरोविष्टब्धअन्नहेसोकूषिमेहार हैपचैनहीं आफरोपेटमेंकरेअरसूलकरैपरकाचोहीअन्नगु दाहाराजायजींकैवायकाप्रतिकरिविसमाग्निहोयजीकै अ रचौथोरससेसभोजनकस्पोआजीनरैपचैनहींमलपतलोही
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