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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग जीकोमृतछाछिसिरीसोउतरे पर वें कायूंतमेंडा उसिरीसीयास श्रावै तीनेतकप्रमेहकहिजे २ अथपिडिकाप्रमेहको लक्षणलि ष्यते जीकामूंतमैपिटकडी वीर्यकी पडे तीनेपिडिका प्रमेहकहिजे ३ प्रथशर्कराप्रमेहकोलक्षण लिप्यते जींकोनमिश्रीसिश सोमीगेहोय अरजीकामून कोवमिश्री सिरीसो होय तीनेंशर्क राममेहकहिजे ४ अथघृतप्रमेहकोल क्षणलिष्यते जीकार्मू तको घृनसिरीसोस्वाद होय सरघृतसिरीसोही वर्णहोयतीनेंट तप्रमेहकहिजे ५ अथप्रतिमूत्रप्रमेहकोलक्षणलिप्यते जीपुरषकैमूत्ररात्रिचरदिनमै घणांसू पोउतरे अरम्योपुर सनिर्बलपडिजाय तनेतिमूत्रप्रमेहकहिजे ६ येाभेय कामतकाप्रमेहछै अथप्रमेहवालाकैदस १० जातिकीची डाहोयत्यांकानामेलिष्यते शराविका ? कछपिका २ जालि नी. ३ विनिता ४ अलजी ५. मसूरीका ६ सर्षपिका ७ पुत्रिणीविदारिका ९ विधी १. अथपिडिकाकोलक्षपलिष्यते श शरकाटुंगानें आदिलेरजो पुष्ट स्थान त्यांकाजोगर्भस्थानकै विसे दस १. संधिउपजेछेतींनेपीडिकाकहिजे १ अथसराविंकाको लक्षणलिष्यते वाकुणसी हंसीऊपरतोऊंची वीचमैजीकैपाडो तीसराविक कहिजे २ अथकछपिकाकोलक्षएालिष्यते पा छैकरथाजोसरीरका पुष्टस्थानांकै विसैसरस्यूंप्रमाणजोफुलसी होयदाहनेंलीयांकछवाकैयाकारती ने कच्छा पकांकहिजे २ अ थजालिनी कोलक्षणलिष्यते जीफुणसी में दाहघणी होय वामांसकासमूहमै हायतींनेजालिनीकहीजे ३ अथविनि नाकोलक्षएालिष्यते जी फुणसी में मांहीपीडाहोय वाणसी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only १२
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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