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आग्रेय गण का संस्थापक राजा अग्रसेन
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राजा है, इसलिये उसने अपने शत्रु अग्रसेन के राज्य में वर्षा का बरसना बन्द कर दिया । दीर्घकाल तक अग्रसेन के राज्य में वर्षा नहीं हुई और इससे बड़ा दुर्भिक्ष पड़ा । पर इससे अग्रसेन निराश न हुवा। उसने महालक्ष्मी की पूजा प्रारम्भ की और उसे प्रसन्न करने के लिये अनेक प्रकार के तप किये । अन्त में अग्रसेन की भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर महालक्ष्मी उसके सन्मुख प्रकट हुई और अपने भक्त को संबोधन कर इस प्रकार बोली “महाराज, जो वर चाहो वही मांगो। मैं तुम्हारी पूजा और भक्ति से पूर्णतया संतुष्ट हूँ, और जो वर मांगोगे, वही मैं पूर्ण करूँगी ।"
इस पर राजा ने उत्तर दिया---"यदि आप मुझ पर सचमुच प्रसन्न हैं, तो इन्द्र को मेरे वश में लाइये ।" महालक्ष्मी ने स्वीकार किया और साथ ही राजा अग्रसेन को कोलपुर जाने का आदेश दिया। वहां नागों के राजा महीरथ की कन्या का स्वयंवर था । राजा अग्रसेन महालक्ष्मी के वरदान से बड़ा संतुष्ट हुवा और देवी को प्रणाम कर कोलपुर के लिये चल पड़ा | वहां बड़ा भारी उत्सव मनाया जा रहा था । दूर दूर से
ए हुवे राजा और राजकुमार स्वयंवर सभा में एकत्रित थे । सब ऊँचे ऊँचे राजसिंहासनों पर विराजमान थे । महालक्ष्मी की आज्ञा का पालन कर अग्रसेन भी वहां पहुँचा और नागकन्या का पाणिग्रहण करने में सफल हुवा | नागकन्या और राजा अग्रसेन का विवाह बड़ी धूमधाम से किया गया । राजा महीरथ की तरफ से बहुत से हाथी, रथ, घुड़सवार पदाति, दास, दासी, हीरे, मोती, सुवर्ण तथा अन्य विविध बहुमूल्य पदार्थ
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