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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास आगरा तथा अगरोहा को राजधानी बना कर राज्य करने लगा। उसका राज्य हिमालय से गंगा और यमुना तक विस्तृत था, तथा पश्चिम में उसकी सीमायें मारवाड़ को छूती थीं। उसकी अठारह रानियां थीं, जिनके द्वारा चौवन पुत्र तथा अठारह कन्याएं उत्पन्न हुई । वृद्धावस्था में उसने निश्चय किया कि अपनी प्रत्येक रानी के साथ एक एक यज्ञ करे। प्रत्येक यज्ञ एक-एक पृथक् प्राचार्य के सुपुर्द था। इन्हीं अठारह आचार्यों के नाम से उन अठारह गोत्रों के नाम पड़े हैं, जिनका प्रादुर्भाव राजा अग्रसेन से हुवा । जब वह अन्तिम यज्ञ कर रहा था तो उसमें बाधा उत्पन्न हो गई और वह उसे पूर्ण न कर सका। यही कारण हैं कि अग्रवालों में सत्रह पूरे और एक आधा गोत्र है।"
यह स्पष्ट है, कि क्रुक महोदय ने अपना यह विवरण मुख्यतया भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र की पुस्तिका 'अग्रवालों की उत्पत्ति' के आधार पर लिखा है। जहां तक राजा अग्रसेन के पूर्वजों का सम्बन्ध है, हम अगले अध्याय में विस्तार से विचार करेंगे। परन्तु अग्रसेन के सम्बन्ध में विविध कथाओं तथा विवरणों का उल्लेख इस अध्याय में करना आवश्यक है। मैं पहले संस्कृत ग्रन्थ 'अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनम' के आधार पर राजा अग्रसेन का वृतान्त लिखता हूँ।
राजा वल्लभ का पुत्र अग्रसेन हुवा । वह एक शक्तिशाली राजा था। देवताओं का राजा इन्द्र उसके बल वैभव से ईर्ष्या करता था। परिणाम यह हुवा, कि इन्द्र और अग्रसेन में लड़ाई शुरू हुई । इन्द्र धुलोक का
1. W. Crooke. The Tribes and Castes of North-Western Provinces
. and Oudh, pp. 14-12
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