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अग्रवाल जाति की उत्पत्ति पावेगा। वे समझेंगे कि खतरे के घण्टे की वजह से महानाम ने खाना छोड़ दिया ।
शाक्य लोग अपनी एक राजकुमारी का विवाह प्रसेनजित् जैसे शक्तिशाली और कुलीन राजा के साथ भी नहीं कर सकते थे, इस बात को वही भली-भांति समझ सकता है, जो भारत के वर्तमान जाति भेद से परिचित हो। मामूली कुल का वैश्य भी बड़े से बड़े राजा के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिये तैयार न होगा । कारण यही कि प्रत्येक जाति अपनी उच्चता तथा कुलीनता का अभिमान रखती है, प्रत्येक को अपनी रक्त शुद्धता की चिन्ता है। भारत की प्रायः प्रत्येक कुलीन जाति के सम्बन्ध में यह बात कही जा सकती है ।
शाक्यों के समान लिच्छवियों के सम्बन्ध में भी यही बात पाई जाती है। लिच्छवि भी बड़ा प्रसिद्ध गण राज्य हुवा है । बौद्ध धर्म के सम्बन्ध में जो अनुश्रुति तिब्बत में पाई जाती है, उसका संग्रह राकहिल महोदय ने किया है । उनके अनुसार लिच्छवि लोगों में विवाह को मर्यादित करने के बड़े कड़े नियम थे। वैशाली (लिच्छवियों की राजधानी ) की कुमारियां वैशाली से बाहर नहीं ब्याही जा सकती थों।
गण में सब लोग एक बराबर होते थे। गरीब और अमीर, निर्बल व शक्तिशाली आदि के भेद चाहे कितने ही हों, पर एक गण के लोगों में कोई ऊँचा नीचा न होता था । जाति व कुल की दृष्टि से मब समान
1. Jataka ( Cowell ),Vol.IV, pp.91-92 2. Rockhill, Life of Buddha, p. 62
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